कोणार्क सूर्य मंदिर का अज्ञात रहस्य! आखिर क्यों बंद है यह रहस्यमयी द्वार?
कोणार्क सूर्य मंदिर का अज्ञात रहस्य! आखिर क्यों बंद है यह रहस्यमयी द्वार?
कोणार्क सूर्य मंदिर का अज्ञात रहस्य! आखिर क्यों बंद है यह रहस्यमयी द्वार? Konark Temple Mysteries

वह साल था 1903 का और स्थान उड़ीसा व मंदिर का नाम कोणार्क सूर्य मंदिर। इसी वर्ष कोणार्क मंदिर के मुख्य दरवाजे को अचानक रेत और बालू से पूरी तरीके से ढक कर बंद कर दिया गया।
इस घटना को करीब 118 साल बीत गए परंतु आज तक भारत सरकार ने इस दरवाजे को नहीं खोला। जब आप कोणार्क मंदिर में जाएंगे तो आपको मंदिर का मुख्य द्वार बंद दिखाई देगा।
आप इस मंदिर के आसपास वाली इलाके में घूम सकते हैं परंतु इस मंदिर का वैभव और रहस्य इस मंदिर के बीचो बीच मुख्य दरवाजे के अंदर मौजूद है। इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य है जैसे कि यह मंदिर अधूरा है।
यह मंदिर शापित है। यह मंदिर सैंकड़ो सालों से रेत में दफन था। इस मंदिर के ऊपर 52 टन का एक चुंबक लगा था। इस मंदिर को बनाने वाले कारीगर ने आत्महत्या कर ली थी।
ऐसा भी कहा जाता है कि रात के वक्त इस मंदिर में से नर्तकी की आवाजें आती हैं। ऐसे ही कई रहस्य हैं जो आप सुनेंगे तो आपके होश उड़ जाएंगे।
लेकिन फिर भी एक सवाल है जो बार-बार मन में उठता है कि इतने प्रयासों की भारत सरकार बार-बार के मुख्य दरवाजे को खोलने का निर्णय बदल देती है क्या छुपाना चाहती है भारत सरकार भी?
यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है इस मंदिर की भव्यता के कारण ही यह देश की सबसे बड़ी 10 मंदिरों में गिना चाहता है । कोणार्क सूर्य मंदिर उड़ीसा राज्य की पूरी शहर से लगभग 23 मील दूर नीले जल से लवरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है।
इस मंदिर को पूरी तरीके से सूर्य भगवान को समर्पित किया गया है। इस मंदिर की रचना इस प्रकार की गई है जैसे एक रथ में 12 विशाल पहले लगाए गए हो और इसको साथ ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हो और इस रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है।
यह मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के शिखर से होते और ढलते सूर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। जब सूर्य निकलता है तो मंदिर से नजारा बेहद ही खूबसूरत दिखता है।
ऐसा लगता है जैसे सूरज की निकली लालिमा ने पूरी मंदिर में लाल नारंगी रंग बिखेर दिया हो। वही मंदिर की आधार को सुंदरता प्रदान करते 12 चक्र, साल के 12 महीने को परिभाषित करते हैं और हर दिन के 8 पहरों को दर्शाते हैं।
यह मंदिर दो भागों में बना हुआ है जिसमें से पहले भाग में सूर्य की किरने पहुंचती थी और कहा जाता है कि कांच या हीरे जैसी धातु से प्रवेश मंदिर की प्रतिमा पर पड़ती थी जिसकी छटा देखते ही बनती थी।
वहीं मंदिर की कलाकृति में इंसान हाथी और शेर से दबा है और ये पैसे और घमंड का घोतक है और ज्ञानवर्धक भी है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को श्राप के कारण कोड़ रोग शुरू हो गया था।
उन्हें इससे बचने के लिए सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी थी। साम्ब ने चंद्रभागा नदी के संगम पर 12 वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न कर दिया और इनके रोग का अंत हो पाया।
इसके बाद साम्ब ने भगवान सूर्यदेव का मंदिर निर्माण करने का निश्चय किया। अपने रोग के निदान के पश्चात चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए सूर्यदेव की मूर्ति मिली। यह मूर्ति विश्वकर्मा जी ने ही बनायी थी।
साम्ब ने इस मूर्ति को अपने बनवाए मित्रवन में एक मंदिर में स्थापित किया और तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माऐं आती हैं।


लोगों की माने तो आज भी यहां पर शाम को उनके नर्तकियों की पायल की झंकार आपको सुनाई देगी जो कभी किसी समय यहां के राजा के दरबार में नृत्य किया करती थीं।
इस मंदिर का निर्माण एक सैंडविच के तौर पर किया गया है जिसके बीच में लोहे के प्लेट थे जिस पर मंदिर के पिलर रखे हुए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर एक 52 टन का चुंबक रखा हुआ था जो कि इन खम्भो से संतुलित था।
इसी के चलते भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा हवा में तैरती रहती थी और इसे देखकर हर कोई हैरत मे आ जाता था। कहा जाता है कि इस चुंबक को विदेशी आक्रमणकारी ने तोड़ दिया था।
ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर रखे चुंबक के कारण चलते समुद्र से गुजरने वाले नाव व जहाज जो कि लोहे के बने होते थे इस चुंबक के कारण क्षतिग्रस्त हो जाते थे। इस कारण अपने नाव को बचाने हेतु नाविक इस चुम्बक को निकाल कर ले गये थे।
यह पत्थर एक केंद्रशिला का कार्य कर रहा था। और इसके कारण ही मंदिर के बाकी सभी पत्थर संतुलन में थे। इसके हटने के कारण खम्भों का संतुलन बिगड़ गया और जिसके कारण और परिणाम स्वरूप मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।
परंतु इस घटना का कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता और ना ही ऐसे किसी चुंबकीय पत्थर का कोई ब्योरा उपलब्ध है। सन् 1568 में उड़ीसा में मुस्लिमों का आतंक था और मंदिर को तोड़ने के निरंतर प्रयास होते रहते थे।
इसी कारण मंदिर के पण्डों ने प्रधान मूर्ति को हटाकर वर्षों तक रेत में दबाकर छिपाए रखा। बाद में यह मूर्ति पुरी भेज दी गई और वहां जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित इंद्र के मंदिर में रख दी गई।
कई लोगों का यह मानना है कि यहां की पूजा मूर्ति अभी भी खोजी जानी बाकी है। लेकिन कई लोगों का यह भी कहना है कि सूर्य देव की मूर्ति जो न्यू दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी है वही कोणार्क की प्रधान पूज्य मूर्ति है।
फिर भी कोणार्क मंदिर में सूर्य वंदना मंदिर से मूर्ति हटने के बाद से बंद हो गई। इस कारण तीर्थ यात्रियों का आना जाना बंद हो गया। सूर्य के समान ही वाणी गतिविधियों का एक नगर था।
परंतु गतिविधियों के बंद हो जाने के कारण एकदम से वीरान हो गया और कई सालों तक रेत और जंगलों से ढका रहा। फिर बाद में मंदिर को खोजा गया लेकिन मंदिर के कई हिस्से बहुत ही बुरी हालत में पाये गये।
फिर बाद में ऐसा कहा जाता है कि कई आक्रमणों और नैचुरल डिजास्टर के कारण मंदिर खराब होने लगा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप जो कि इस मंदिर का प्रधान मंडप है उसके चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और पूरी तरह से इसे रेत से भर दिया।
ऐसा इसलिये ताकि यह इसी तरह सलामत रहे और इस पर किसी डिजास्टर का प्रभाव ना पड़े। इस काम में करीबन 3 साल लगे और 1903 में यह पूरी तरीके से पैक हो गया।
वहां जाने वालों को यह पता नहीं होता कि मंदिर का अहम हिस्सा जो कि जगमोहन मण्डप है वह अभी तक बंद है। बाद में एएसआई ने इसके अंदर के हिस्सों पर शोधकार्य आरंभ किया।
कई बार इस मंदिर की मुख्य दरवाजों को खोलने की बात कही गई परंतु 118 साल बीत गए और आज भी यह बंद है। आखिर क्या वजह थी इसको बंद करने की और दोस्तों आपका क्या ख्याल है इसके बारे में जरूर लिखें कॉमेण्ट सेक्शन में। कोणार्क सूर्य मंदिर रहस्य
अगर आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें। धन्यवाद!