चरित्रहीन महिला की होती हैं ये पहचान
Chanakya Niti के अनुसार चरित्रहीन महिला की ये पहचान होती हैं || Chanakya Neeti Full in Hindi
Chanakya Niti के अनुसार चरित्रहीन महिला की ये पहचान होती हैं || Chanakya Neeti Full in Hindi

Chanakya Niti, आचार्य चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रंथ है जिसमें जीवन को सुखमय और सफल बनाने के लिए उपयोगी सुझाव दिए गए हैं। इस ग्रंथ का मुख्य विषय मानव समाज को जीवन के हर एक पहलू की व्यवहारिक शिक्षा देना है।
चाणक्य एक महान ज्ञानी थे जिन्होंने अपनी नीतियों के बदौलत चंद्रगुप्त मौर्य को राजा की गद्दी पर बिठा दिया था। जानिए चाणक्य की कुछ ऐसी महत्वपूर्ण नीतियां जो आपको जीवन के किसी न किसी मोड़ पर काम आ सकती है।
तो दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको आचार्य चाणक्य के बहुत ही अद्भुत ज्ञान के बारे में बताएंगे। आज हम आपको आचार्य चाणक्य के अनमोल विचारों के बारे में बताने जा रहा हैं जिसको सुनकर आपकी जिंदगी में काफी बदलाव आएंगे।
अगर आपने इनकी चाणक्य नीति को अच्छे से समझ लिया और आपने अपने ऊपर नियमित रूप से लागू कर लिया तो आपको एक महान व्यक्ति बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।
तो दोस्तों इस ज्ञान को इन विचारों को पूरा जरूर पढिएगा। अगर आपको यह पसंद आए तो शेयर करिएगा करियेगा अपने मित्रों के साथ में। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार से बचपन में शिक्षा दी जाती है उनका विकास उसी प्रकार होता है।
इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएं जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि अच्छे व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं मित्रता हमेशा बराबरी वाले लोगों से ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहार कुशल होना आवश्यक है।
इसी तरह सुंदर और सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है। बुरे चरित्र वाले दूसरों को हानि पहुंचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए।
मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दें। आचार्य चाणक्य कहते हैं जो मित्र आपके सामने चिकनी चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो उसे त्याग देने में ही भलाई है।
वह उस बर्तन के समान है जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ है। वही गृहस्थ सुखी है जिसकी संतान उसकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि पुत्रों का पालन पोषण अच्छी तरह से करें।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शक्ति द्वारा समर्पित है यह सत्य की शक्ति ही है जो सूरज को चमक देती है सत्य पर निर्भर करती है।
ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त ना हो।
आचार्य कहते हैं बुद्धिमान लोगों को वो दो जो उसके योग्य हो और किसी को नहीं। बादलों के द्वारा लिया गया समुद्र का जल हमेशा मीठा होता है। यदि किसी का स्वभाव अच्छा है तो उसे किसी और गुण की क्या जरूरत है।
यदि आदमी के पास प्रसिद्धि है तो भला उसे और किसी सिंगार की क्या जरूरत है। आचार्य चाणक्य कहते हैं संतुलित दिमाग से बढ़कर कोई नहीं है संतोष जैसा कोई सुख नहीं होता है लोभ जैसे कोई बीमारी नहीं है और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है।


वह जो अपने परिवार से अत्यधिक जुड़ा हुआ है उसे भय और चिंता का सामना करना पड़ता है क्योंकि सभी दुखों की जड़ है। इसलिए खुश रहने के लिए चिंता करना छोड़ देना चाहिए।
हमें भूतकाल के बारे में ऐसा कभी ही करना चाहिए ना ही भविष्य काल के बारे में चिंतित होना चाहिए। विवेकशील व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं।
आचार्य कहते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है जब तक आपका शरीर स्वस्थ और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है। अपनी आत्मा को बचाने की कोशिश कीजिए क्योंकि मृत्यु सर पर आ जाए तो आप क्या करेंगे।
आचार्य चाणक्य कहते हैं शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है। शिक्षा हमेशा ही सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है और अकेले ही मर जाता है। वह अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भोगता है और अकेले ही नरक या स्वर्ग में जाता है। आचार्य चाणक्य ने आगे कहा है जो बीत गया सो बीत गया।
अपने हाथों से कोई गलत काम हो गया तो उसकी फिक्र छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जी कर भविष्य को संवार ना चाहिए। ऐसा पैसा बेकार है जो बहुत तकलीफ के बाद मिले या अपना धर्म छोड़ने पर मिले।
दूसरों के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय भी पतन के मार्ग पर जा सकती है इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता।
इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए। आचार्य चाणक्य कहते हैं झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल कपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना और पवित्रता और निर्दयता दिखाना यह सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष है।
हालांकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है। दोस्तों आचार्य चाणक्य आगे बताते हैं जब आप तप करते हैं तब अकेले करें, अभ्यास करते हैं तब दूसरों के साथ करें, गायन करते हैं तब तीन लोग करें, खेती चार लोग करें और युद्ध अनेक लोग मिलकर करें।
कामयाब होने के लिए अच्छे मित्रों की जरूरत होती है और ज्यादा कामयाब होने के लिए अच्छे शत्रु की आवश्यकता होती है। कामवासना के समान कोई दूसरा रोग नहीं।
मोह के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं और क्रोध के समान कोई आग नहीं। अज्ञान से बड़ा कोई दुख नहीं। आचार्य चाणक्य कहते हैं आपका खुश रहना ही आपके दुश्मन के लिए सबसे बड़ी सजा है।
अच्छे कार्य जीवन को महान बनाते हैं। यह मत भूलें कि यह जीवन अस्थाई है इसलिए जीवन के हर क्षण का उपयोग किया जाना जरूरी है। पता नहीं मौत कब आ जाए और फिर कुछ भी ना रहेगा ना यह शरीर ना कल्पना और न ही आशा।
हर चीज मौत के साथ दम तोड़ देगी। आगे आचार्य चाणक्य ने कहा है भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना उन्हें पचाने की शक्ति का होना और सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए काम शक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ धन देने की इच्छा का होना यह सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिन था से प्राप्त होते हैं।
जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।
आगे आचार्य चाणक्य ने कहा है जीवन में पुरानी बातों को भुला देना ही उचित होता है अतः अपनी गलत बातों को भुलाकर वर्तमान को सुधारते हुए जीना चाहिए।
जो लोग हमेशा दूसरों की बुराई करके खुश होते हैं ऐसे लोगों से दूर ही रहो क्योंकि वह कभी भी आपके साथ धोखा कर सकते हैं। जो किसी और का ना हुआ वह भला आपका कैसे हो सकता है। अपने रहस्यों को किसी के साथ भी उजागर मत करो।
यह आदत स्वयं के लिए घातक सिद्ध होगी। आचार्य चाणक्य कहते हैं सज्जन तीन बराबर उपकार को भी पर्वत के समान बड़ा मन कर चलता है।
आंख से अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अपनी कमाई में से 10% हिस्सा संकटकाल के लिए हमेशा बचा कर रखना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए क्योंकि जंगल में सीधे खड़े सबसे पहले काटे जाते हैं और जो टेड़े हैं उनको छोड़ दिया जाता है।
सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज होता है पर अच्छाई चारों दिशाओं में फैलती है। अगर सांप जहरीला न भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए। तो दोस्तों यह थे आचार्य चाणक्य के अद्भुत और अनमोल विचार।