अनुसूया की कहानी || Anusuya Ki Kahani || Kaise Anusuya Ne Pativrat Dharm Ko Bachaya
अनुसूया की कहानी || Anusuya Ki Kahani || Kaise Anusuya Ne Pativrat Dharm Ko Bachaya
अनुसूया की कहानी || Anusuya Ki Kahani || Kaise Anusuya Ne Pativrat Dharm Ko Bachaya
दोस्तों यह कहानी एक ऐसी स्त्री की है जिन्होंने अपने आतिथ्य धर्म का पालन करने के लिए निर्वस्त्र होकर अपने घर आए अतिथियों को भोजन कराया था। परंतु उनकी ऐसी सूझबूझ और योग बल के आगे तीनों देवियों को नतमस्तक होना पड़ा था।
तो आइए एक बार विस्तार से प्रकाश डालते हैं कि यह सब कुछ कैसे घटित हुआ था। एक बार नारद जी देवलोक में विचरण कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि देवी लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती अपने-अपने विषयों पर चर्चा कर रही थी।
तभी नारद जी उनके पास पहुंचे और कहने लगे कि पृथ्वी लोक पर देवी अनुसूया के समान पतिव्रता नारी कोई भी नहीं है और वह तीनों लोकों में सबसे पवित्र है।
परंतु नारद जी के श्री मुख से ऐसे वचन सुनकर तीनो देवियों के मन में अनसूया के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो गई और वे तीनों अपने-अपने पतियों से अनुसूया के पतिव्रत धर्म को खंडित करने का आग्रह करने लगी।
इस पर त्रिदेव ने उन्हें बहुत समझाया परंतु वे नहीं मानी। अनसूया की परीक्षा लेने के लिए साधारण से ऋषियों का रूप बनाकर वे आश्रम पहुंचकर भिक्षा मांगने लगे। उस समय देवी अनुसूया के पति आश्रम में नहीं थे।
ऐसे में अतिथि सत्कार का पालन करते हुए तीनो ऋषियों का स्वागत सत्कार किया। लेकिन उन्होंने कहा हम तो वनों में विचरण करते हैं और केवल उसी के यहां भोजन करते हैं जो हमें मातृ अवस्था में भोजन कराता है।
साधुओं के समक्ष उनके पतिव्रत धर्म और अतिथि धर्म खंडित होने का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में अतिथि सत्कार का पालन करते हुए श्री मूर्तियों का स्वागत सत्कार किया। अपनी योग शक्ति के बल से उन तीनों साधुओं को नन्हे शिशुओं में परिवर्तित कर दिया।
तत्पश्चात माता अनुसूया ने मुस्कुराते हुए उनकी इच्छा के अनुसार मातृत्व भाव से उन्हें बारी-बारी से स्तनपान कराया। और इस प्रकार से अब उनका सतीत्व भी सुरक्षित रहा और साथ ही साथ उन्होंने आतिथ्य सत्कार के धर्म का पालन भी कर लिया था।
उधर देव लोक में काफी समय बीत गया और तब नारद सहित तीनों देवियां आश्रम पहुंची। नारद जी ने विनय पूर्वक अनसूया से कहा कि यह तीनों देवियां आपके यहां पर अपने पतियों को लेने आई है।
कृपया आप ही ने उनके पतियों को सौंप दीजिए तत्पश्चात अनसूया ने उन तीनो देवियों से कहा कि यदि आपके पति है तो आप इन्हें जा सकती हैं। लेकिन जब तीनों शिशुओं को देखा तो एक समान दिख रहे थे।
इस पर वे चिंतित हो गईं और जल्दबाजी में उन्होंने शिशुओं को गोद में उठा लिया परंतु जब मालूम हुआ शिवजी, ब्रह्मा जी को और पार्वती ने विष्णु को उठा लिया है तो तीनों देवियां बहुत लज्जित हुई थी।
उन्होंने कहा कि उन्होंने परीक्षा लेने के लिए अपने-अपने पतियों को उनके पास भेजा था। परंतु देवी अनुसूया ने उन त्रिदेवों को बचपन का रूप प्रदान किया।
इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने दत्तात्रेय रूप में चंद्रमा के रूप में भगवान शिव के रूप में माता अनसूया के गर्भ से जन्म लेने का वरदान दिया था।
तो दोस्तों अब तो आप जान ही गए होंगे कि किस प्रकार से जब किसी स्त्री के पतिव्रत धर्म की बात सापने आती है तो वह अपनी बुद्धि के बल से कुछ भी कर सकती है। यह कथा यहीं समाप्त होती है उम्मीद करते हैं आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। धन्यवाद!