मन को भटकने से रोकने का अचूक उपाय || How to Focus Your Mind
मन को भटकने से रोकने का अचूक उपाय || How to Focus Your Mind
मन को भटकने से रोकने का अचूक उपाय || How to Focus Your Mind

दोस्तों आप चाहे कितने भी प्रयास कर लें लेकिन एक न एक दिन ऐसा समय जरूर आता है जब आपका मन भटक जाता है। मन को संयम में रखना बहुत ही जरूरी होता है चाहे आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों। जब भी आपको यह सवाल परेशान करे How to Focus Your Mind तो हमेशा नीचे दी गयी कहानी का स्मरण कर लेना आपको आपके सवालों का जवाब जरूर मिल जायेेगा।
एक बार की बात है, अपने सभी दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर गौतम बुध के सभी शिष्य एकत्र हो गए । गौतम बुद्ध ने संदेश देना आरंभ किया और वह बोले आज मैं तुम्हें ऐसे व्यक्ति की कथा सुनाता हूं जिसके पास सब कुछ होते हुए भी वह दुखी था।
गौतम बुद्ध ने कहना आरंभ किया कि किसी नगर में एक सेठ रहता था। उसके पास लाखों की संपत्ति थी। बहुत बड़ी हवेली थी, नौकर चाकर थे फिर भी सेठ के मन को शांति नहीं मिलती थी।
एक दिन किसी ने उसे बताया कि एक नगर में एक साधु रहता है वह लोगों को ऐसे सिद्धि प्राप्त करा देता है कि उस से मनचाही वस्तु मिल जाती है।
सेठ उस साधु के पास गया और उसे प्रणाम करके निवेदन किया कि महाराज मेरे पास धन की कमी नहीं है पर फिर भी मेरा मन बहुत अशांत रहता है।
आप कुछ ऐसा उपाय बता दीजिए कि मेरी अशांति दूर हो जाए। सेठ ने सोचा कि साधु बाबा उसे कोई ताबीज दे देंगे या और कुछ ऐसा कर देंगे जिससे उसकी इच्छा पूरी हो जाएगी और उसका मन हमेशा के लिए शांत हो जाएगा।
लेकिन साधु ने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि अगले दिन उसने सेठ को धूप में बिठाए रखा और स्वयं अपनी कुटिया के अंदर छाया में जाकर चैन से बैठा रहा।


गर्मी के दिन थे, सेठ का बुरा हाल हो गया। उसको बहुत गुस्सा आया पर उसने किसी तरीके से खुद को शांत रखा। दूसरे दिन साधु ने कहा आज तुझे दिन भर खाना नहीं मिलेगा।
भूख के मारे दिन भर उसके पेट में चूहे कूदते रहे पर अन्न का एक दाना भी उसके मुंह में नहीं गया। लेकिन उसने देखा कि साधु ने तरह-तरह के पकवान उसी के सामने बैठकर आनंद से खाए।
वह बहुत परेशान रहा और ठीक से नहीं सो पाया। उसे नींद ही नहीं आई और रात भर सोचता रहा कि सवेरा होते ही और चलने को तैयार हो गया। तभी साधु उसके सामने आकर खड़े हो गए और बोले क्या हुआ?
उसने कहा मैं यहां बड़ी आशा लेकर आपके पास आया था लेकिन मुझे यहां कुछ भी हासिल नहीं हुआ। साधु की ओर सेठ ने देखा और बोला आपने तो मुझे कुछ भी नहीं दिया।
साधु ने कहा, सेठ पहले दिन जब मैंने तुम्हें धूप में बिठाया और स्वयं छाया में बैठा रहा था। इसका अर्थ था कि मैंने तुम्हें बताया कि मेरी छाया तेरे काम नहीं आ सकती।
तब मेरी बात तेरी समझ में नहीं आई। दूसरे दिन मैंने तुम्हें भूखा रखा और स्वयं खूब अच्छी तरह खाना खाया उससे मैंने तुम्हें समझाया कि मेरे खा लेने से तेरा पेट नहीं भर सकता।
सेठ याद रख मेरी साधना से तुझे सिद्धि नहीं मिलेगी। तूने अपना धन अपनी मेहनत से कमाया है और शांति भी तुझे अपने पुरुषार्थ, साधना और अपनी मेहनत से ही मिलेगी।
सेठ की आंखें खुल गई और अब उसे अपनी मंजिल पर पहुंचने का रास्ता मिल गया था। साधु के प्रति आभार व्यक्त करता हुआ वह सेठ अपने घर लौट आया।