Machander Nath Ki Kahani Bhag 1 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 1|| Machander Nath Ki Katha Bhag 1 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 1
Machander Nath Ki Kahani Bhag 1 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 1|| Machander Nath Ki Katha Bhag 1 || मछंदर नाथ की कथा भाग 1 ||
Machander Nath Ki Kahani Bhag 1 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 1|| Machander Nath Ki Katha Bhag 1 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 1 ||
Guru Machander Nath Ka Janm || मछंदर नाथ का जन्म
कहानी की शुरूआत करते हैं इस प्रश्न के साथ कि गुरू मछंदर नाथ का जन्म कैसे हुआ? बहुत समय पहले की बात है जब मछली पुत्र मछंदर नाथ के जन्म के समय भगवान शिव और माता गौरा पार्वती कैलाश पर्वत पर पधार रहे थे।
तभी पार्वती ने महादेव से कहा कि आप किस मंत्र का जाप करते हैं? यह मुझे बताने की भी कृपा करें। इतना सुनकर शिव जी मुस्कुराये और बोले कि देवी इस मंत्र के लिये एकांत का होना अति आवश्यक है।
उठो अब चलकर एकांत स्थल को ढूँढते हैं। ऐसा कह दोनों प्राणी उठ खड़े हुए और घूमते फिरते समुद्र तट पर जा पहुँचे। वे दोनों अब ऐसे स्थान पर थे जहां किसी भी मनुष्य का कोसों तक वास नहीं था।
इसीलिये वही स्थान पसंद आया। दोनों प्राणी वहां अपना आसन बिछाकर विराजमान हो गये।
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तब शंकर जी ने महामाया पार्वती जी को ब्रह्मज्ञान का उपदेश देना प्रारम्भ किया। लेकिन जिस मछली ने ब्रह्म वीर्य निगलकर गर्भ धारण किया था वह मछली पास के पानी में ही थी।
मछली माँ के गर्भ में उन मंत्रों को जीव अहम्भावना तज ब्रह्मरूप हो गया। कथा समाप्त होने के बाद महादेव ने पार्वती जी से पूछा कि कथा का सार कुछ समझ आया कि नहीं?
अन्त में गर्भ के अन्दर से मछंदर नाथ Machander nath बोले कि सब कुछ ब्रह्मरूप है। दूसरी आवाज सुन शिव ने उस ओर देखा तब जाना कि मछली के गर्भ से प्रभु नारायण जन्म लेने वाले हैं।
ऐसा समझ शिवजी बोले कि तुम्हें मेरे उपदेश से महान ज्ञान का लाभ हुआ है। लेकिन पूर्ण उपदेश लाभ दत्तात्रेय जी के दर्शनों से दोबारा होगा। तुम सामर्थ होने पर बद्रिकाश्रम आना वहीं तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।
इतना कहकर शिवजी, पार्वती जी को अपने साथ लेकर कैलाश पर्वत पर चले गए। इसके बाद मछंदर नाथ मछली मां के पेट में ही शिवजी द्वारा दिये गये मंत्रों का उच्चारण करने लगे।
मछली पुत्र मछंदर नाथ का अण्डे से बाहर आना
इस प्रकार दिन पूरे होने पर मछली मां समुद्र के बाहर अण्डा देकर जल में चली गयीं। कुछ समय बाद एक बगुला मछली पकड़ने समुद्र तट पर आया और वहां अण्डा पड़ा देखकर अपनी तेज चोंच से अण्डा फोड़ने लगा।
अण्डे के अंदर से बच्चे के रोने की आवाज सुनकर बगुला भाग गया। कुछ देर बाद कामिक नामक एक मछुआरा वहां आया।
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सूर्य के सामने तेज मुख वाला बालक देखकर उसका दिल भर आया और वह सोचने लगा कि यह तो प्रभु का प्रसाद मुझ जैसे अभागे को मिला प्रतीत होता है।
इतने में ही आकाशवाणी हुई कि हे कामिक, यह बालक यहां पर तड़प-तड़प कर मर जावेगा। यह तो साक्षात नारायण का अवतार हैं। इसे अपने घर ले जाकर अपने पुत्र के समान इसका लालन पालन करो।
इसका नाम मछेनद्रनाथ रखना क्योंकि ऐसा करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तेरा कुल तर जाएगा। संपूर्ण पृथ्वी पर तेरा नाम अमर हो जाएगा।
Baba Machander Nath Ki Kahani|| बाबा मछंदर नाथ की कहानी || Baba Machander Nath Ki Katha || बाबा मछंदर नाथ की कथा || Machander Nath Ki Kahani
यह आकाशवाणी सुन कामिक बालक को अपने घर ले जाकर अपनी पत्नी से कहा कि यह बालक हमें भगवान ने दिया है। कामिक की पत्नी ने बालक को अपने गोद में लेकर दूध पिलाया। इसी दौरान कामिक ने अपनी पत्नी को सारी कहानी सुना दी।
तब कामिक की पत्नी ने खुश होकर बालक को नहला धुला कर कपड़े पहनाकर झूले में सुला दिया। एकाएक अपूर्व सुंदर बालक मिलने से पति व पत्नी दोनों को आनन्द आ गया।
धीरे-धीरे बालक मछेन्द्र 5 वर्ष का हो गया। एक दिन उसका पिता कामिक उसे मछली पकड़ने समुद्र तट पर अपने साथ ले गया। जब कामिक ने मछली पकड़ने के लिये जाल फैलाया तो उसमें बहुत सी मछलियां आ फंसी।
पिता ने उन्हें टोकरी में भरकर बेटे के पास लाकर रख दी। तब पिता का यह कार्य देख बालक ने सोचा कि मेरे मातृ वंश का हनन करने वाला कसाई जैसा कार्य मेरा बाप करे यह मैं हरगिज नहीं होने दे सकता।
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आस्तिक ऋषि ने जिस तरह जन्मेजय के यज्ञ से सर्पों के कुल को बचाया था, उसी प्रकार मुझे भी अपने पिता को समझा बुझा कर यह उद्योग बंद करवाना चाहिये। ऐसा विचार कर बालक मछंदर नाथ ने एक एक कर टोकरी से सभी मछलियों को पानी में डाल कर वापस भेज दिया।
कामिक जब दोबारा मछली पकड़कर मछेन्द्र के समीप लेकर आया तो अपने बेटे की करतूत समझकर टोकरी को खाली देखकर उसे धमका कर बोला-
मैं तो कितनी मेहनत से मछलियां पकड़ कर लाता हूँ और तू उन्हें पानी में बहा रहा है। अब खायेगा क्या? भीख मांगनी पड़गी। अब मछलियां दोबारा पानी में मत छोड़ना और ऐसा कहकर वह वापिस मछलियां पकड़ने समुद्र तट की ओर चल पड़ा।
मछलियों के कारण बाप की डांट से बालक मछंदर नाथ को काफी दुख हुआ। उन्होंने सोचा कि मेरा ये अधर्मी बाप मानने वाला नहीं है। इससे तो भीख मांगकर खाना ही हजार गुना अच्छा है। इसीलिये अब से जब भी खाना खाऊॅंगा, भीख मांगकर ही खाऊँगा।
बाप को मछलियां पकड़ने में मगन देखकर और उससे नजरें चुराकर वह बद्रिकाश्रम की ओर चल लिया। काफी दिनों की यात्रा के बाद वह वहां जा पहुंचा। वहां जाकर 12 वर्षों तक उसने कठिन तपस्या की जिससे उसका शरीर ढांचा मात्र ही रह गया था। शरीर में सिर्फ हड्डियां मात्र ही रह गईं थीं।
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