Machander Nath Ki Kahani Bhag 14 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 14 || Machander Nath Ki Katha Bhag 14 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 14
Machander Nath Ki Kahani Bhag 14 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 14 || Machander Nath Ki Katha Bhag 14 || मछंदर नाथ की कथा भाग 14
Machander Nath Ki Kahani Bhag 14 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 14 || Machander Nath Ki Katha Bhag 14 || मछंदर नाथ की कथा भाग 14
जब गोपीचन्द ने अपनी माता को रोते देखा तो वे अपनी मां के पास जा पहुँचे। उन्होंने हाथ जोड़कर अपनी माता को प्रणाम किया और उनसे अनायास ही रोने का कारण भी पूछा। हे माता, आप किस कारण से रो रहीं हैं?
तो माता ने कहा कि आज तुम्हारे पिता का ख्याल आ गया। जिस प्रकार तुमहारे पिता का शरीर नष्ट हुआ उसी प्रकार तुम्हारा भी होगा। मैं बस इतना चाहती हूँ कि तुम्हारी मृत्यु न हो और तुम अमर हो जाओ।
यह सुनकर राजा गोपीचन्द अपनी माता मैनावती से बोले कि हे माता, जिसका जनम हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है।
यह सुन माता ने कहा कि अमरता प्रदान करने वाले योगी जी हमारे राज्य में पधारे हैं। तुम पूर्ण भक्ति भाव से उनकी शरण में जाओ और उनहें अपना गुरू मानकर उनके चेले बन जाओ। वह तुम्हें अमरता प्रदान करेंगे।
यह सुन राजा बोले कि यह सब मैं इतनी शीघ्रता से नहीं कर पाऊँगा। आप अभी मुझे राज्य सुख भोगने दें। बारह वर्ष पश्चात गुरू की शरण में जाऊँगा। और ध्रुव के समान सारे संसार में अपना यश फैलाउंगा।
यह सुन मैनावती बोलीं-
बेटा, तुम बारह वर्ष की बातें करते हो जबकि एक पल का भी भरोसा नहीं है। गोपीचन्द ने अपनी माता से कहा कि हे माता मैं तुम्हारी आज्ञा से अलग नहीं हूँ। पर योगी का प्रताप कैसा है यह तसल्ली करने के बाद ही मैं गुरू की शरण में जाऊँगा।
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Guru Machander Nath Ki Katha || गुरू मछंदर नाथ की कथा || Baba Machander Nath Ki Kahani || Machander Nath Ki Kahani Bhag 14
अपनी माता को इतना समझा कर राजा गोपीचन्द स्नान करने को चले गये। जब अगले दिन राजा सोकर उठे तो पटरानी राजा को देखकर रोने लगीं। राजा ने पटरानी के रोने का कारण पूछा तो रानी ने उत्तर दिया कि मैं अपने भाग्य पर रो रही हूँ।
महारानी अपना त्रिया चरित्र दिखाते हुए बोली कि यदि जान बख्शी जाए तो सत्य बताने का साहस करुँ।
यह सुन राजा ने कहा कि सत्य बताने में जान बख्शने की क्या आवश्यकता है? और वह भी पटरानी के लिये जिनका चंद्रमा के समान मुख देखकर हम जी रहे हैं। आपको जो कुछ भी कहना है वह बिना किसी झिझक के बोलिये।
पटरानी जी बोलीं कि प्रीतम बात कुछ ऐसी है कि जिसे सुनकर आपको मुझ पर क्रोध आ सकता है। राजा ने कहा कि सत्य बात पर भला मुझे क्रोध क्यों आयेगा?
रानी ने कहा कि हे प्राणनाथ मैं काफी दिनों से जासूसी कर रही थी और अब मैं इस निश्चय पर पहुँची हूँ कि जो योगी इस नगरी में आया है उसका और राजमाता का नाजायज संबंध है। राजा हम सब के सो जाने के बाद योगी की कुटिया पर मिलने जाती हैं।



इन दोनों ने मिलकर षडयंत्र रचा है कि राजा को दीक्षा दिलाकर राज-पाट छुड़वाकर दूर भगा दें और हम दोनों मिलकर राज्य सुख का आनन्द लें। यही मेरे रोने का कारण है। आप मेरी बात की सत्यता की जांच भी करवा सकते हैं।
अपनी पटरानी की बातें सुनकर राजा गोपीचन्द को पूर्ण विश्वास हो गया कि राजमाता योगी के जाल में फंसी हुई हैं। इस प्रकार का मन बनाकर गोपीचन्द अपनी पटरानी से बोले कि महारानी तुम चिंता न करो क्योंकि मैं आज ही इस योगी को जमी दोष करवा दूँगा।
वह बहुत ही चालाक योगी है अत: मैंने उसे उसकी चालाकी पर दण्ड देने का निश्चय किया है। राजा ने अपने प्रधानमंत्री से कहा कि तुम गुप्त रूप से एक गहरा गड्ढा खुदवाकर उस धूर्त को उसमें पटक दो और ऊपर से घोड़ों की लीद भरवाकर गड्ढे को पटवा दो वरना नगर में बवाल मच जाने की आशंका है।
राजा की आज्ञा मानकर प्रधानमंत्री ने अपने कर्मचारियों को साथ लेकर गहरा गड्ढा खुदवा दिया। योगी उस समय बहुत गहरी समाधि में थे और उपासना कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने उन्हें उसी अवस्था में गड्ढे में रखवा दिया। उस गड्ढे को लीद आदि से भरवा दिया।
योगी बहुत ही गहरी समाधि में लीन थे इसीलिये उन्हें कुछ भी पता नहीं चल सका। वे तो अपने सांवर मंत्रों की सिद्धि में कुछ इस प्रकार लगे हुए थे जैसे सारा कार्य उनकी इच्छा से एकांत में भजन करने के लिये हो रहा हो।
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Baba Machander Nath Ki Katha || Baba Machindra Nath || Machander Nath Ki Kahani || Machindranath Story In Hindi || Machander Nath Ki Kahani Bhag 14
इधर गोरखनाथ से अपने गुरू की दुर्दशा के बारे में जानकर कणिफानाथ को काफी दुख हुआ और साथ में आश्चर्य भी कि मेरे गुरू को कैद करने की हिम्मत राजा गोपीचन्द की कैसे हुई?
गुरूदेव उसकी नगरी को भस्म न कर आखिर कैसे खुद को कैद करवा सकते हैं? कणिफानाथ ने तुरंत ही अपने शिष्यों से कहा कि जल्दी से डेरा उठाओ और बैलगाडि़यों में लदवाओ और हाथियों पर झूले डलवा दो। रथ पालकी तैयार कर राजा गोपीचन्द की राजधानी हेलापट्टन अति शीघ्र चलो।
कणिफानाथ की आज्ञा सुनकर उसके सारे शिष्य अपने-अपने काम में जुट गये और राजा गोपीचन्द की राजधानी हेलापट्टन पहुँच गये। योगियों का वायु वेग के समान हाथी-घोड़ों पर आगमन सुनकर हेलापट्टन के सभी नागरिक भारी संख्या में योगियों के स्वागत को पहुँच गये।
राजा गोपीचन्द भी अपने सभी अधिकारियों को लेकर योगियों के स्वागत के लिये पहुँचे। राजा गोपीचन्द को आया देखकर जनता ने जयकारे लगा-लगाकर धरती और आसमान एक कर दिये। गोपीनाथ ने कणिफानाथ को नमस्कार किया और अपने साथ राजमहल ले गये।
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