Machander Nath Ki Kahani Bhag 17 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 17 || Machander Nath Ki Katha Bhag 17 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 17
Machander Nath Ki Kahani Bhag 17 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 17 || Machander Nath Ki Katha Bhag 17 || मछंदर नाथ की कथा भाग 17
Machander Nath Ki Kahani Bhag 17 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 17 || Machander Nath Ki Katha Bhag 17 || मछंदर नाथ की कथा भाग 17
इधर मछेनद्रनाथ और गोरखनाथ सौराष्ट्र होते हुए तेलुगण जा पहुँचे और गोदावरी में स्नान कर शिवजी के पूजा अर्चना की। इसके बाद दोनों लोग ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में गये जहां बहुत गहरा वन है। इतने सघन वन में रास्ता भी दिखना मुश्किल लग रहा था।
ऐसे भयानक वन में जाते हुए मछेन्द्रनाथ भी भयभीत हो उठे। किंतु उनके भय का कारण सघन वन के अलावा कुछ और भी था। वे जानते थे कि रानी मैनाकिनी ने एक सोने की ईंट उनके झोले में रख दी थी। वे उसके चोरी हो जाने के डर से ज्यादा भयभीत थे।
वे रास्ते भर गोरखनाथ से पूछते जाते कि यहां कहीं चोरी का भय तो नहीं है? सारा भय गोरखनाथ की परीक्षा लेने का एक छुपा हुआ कारण भी था। गोरखनाथ सोचने लगे कि गुरूजी के पास जरूर कोई माया है।
कुछ समय पश्चात उन्हें पानी दिखाई दिया तब गोरखनाथ के पास सामान रखकर वे नित्य कर्मों से निपटने के लिये चले गये। तब गोरखनाथ ने गुरू जी के झोले में से ईंट निकाली और उसमें वैसे ही वजन का पत्थर रख दिया।
जब वे चलने लगे तो आगे एक कुंआ दिखाई दिया तो गोरखनाथ बोले कि आगे जो कुंआ दिखाई देता है वहां जाकर स्नान करेंगे। गोरखनाथ के ऐसा कहने पर मछंदर नाथ बोले कि स्नान करने पर कहीं कोई चोर सोने की ईंट न चुरा ले जाये।
यह सुनकर गोरखनाथ बोले कि जब धन आपके पास है ही नहीं तो चोरी का भय आपको क्यों सता रहा है? गोरखनाथ, मछेन्द्रनाथ का हाथ पकड़कर पर्वत पर चढ़ने लगे। लेकिन गुरू ने चढ़ने से पहले झोले में रखी ईंट टटोली तो उसे न पाकर गोरखनाथ को भला-बुरा कहने लगे।
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Guru Machander Nath Ki Katha || गुरू मछंदर नाथ की कथा || Baba Machander Nath Ki Kahani || Machander Nath Ki Kahani Bhag 17
अपने गुरूजी के शब्द गोरखनाथ को चुभ तो रहे थे पर फिर भी वे चुप ही रहे। मछंदर नाथ बोले कि मैं बड़ा भण्डारा करने की सोच रहा था। चलते-चलते गोरखनाथ ने सिद्ध मंत्र का जाप कर पेशाब किया जिससे सारा पर्वत ही सोने का हो गया।
अब वे स्वर्ण लेने के लिये गुरू से प्रार्थना करने लगे। अपने शिष्य की यह करतूत देखकर योगीराज वाद-विवाद करने लगे तो योगीराज ने अपने गुरू से कहा कि जितना सोना लेना हो ले लेंगे।
यह सुन मछंदर नाथ बोले कि जिसका शिष्य खुद सोना बनाने वाला हो उसे भला सोने का क्या करना? तब गारखनाथ ने अपने गुरू से कहा कि आपने सोने की ईंट के लिये इतनी हाय-तौबा क्यों की?
यह सुन मछेन्द्रनाथ बोले कि अपने शिष्य की परीक्षा लेने के लिये। गोरखनाथ ने कहा कि अपने साथियों को बुलवा लें क्योंकि मुझे एक भारी भण्डारा करवाना है। फिर देखते ही देखते नौ नाथ वहां आ पधारे।
अब सब व्यवस्था सुचारू रूप से हो जायेगी आप अब निश्चिंत रहे गुरूजी। ऐसा अपने गुरू मछेन्द्रनाथ से कहकर अष्ट सिद्धियों को बुलाकर भोजन की व्यवस्था की और बढि़या-बढि़या पकवान बनवाने की आज्ञा दी।
उसी समय गंधर्व के साथ मधुनामा पण्डित अपने पुत्र के साथ हंसी-खुशी कठिन मार्ग तय कर गर्भादि पर्वत पर आये और गहनीनाथ को मछंदर नाथ के कदमों में डाला।



Baba Machander Nath Ki Katha || Baba Machindra Nath || Machander Nath Ki Kahani || Machindranath Story In Hindi || Machander Nath Ki Kahani Bhag 17
मछंदर नाथ ने कहा कि तुम भंजन नारायण के अवतार हो। किसी समय महादेव जी ने मछेन्द्रनाथ जी से कहा था कि हमें आगे चलकर भी अवतार लेना है और तब मैं निर्वितनाथ के नाम से मशहूर हो जाऊँगा और गहनीनाथ को अपना शिष्य बनाऊँगा। इसीलिये अभी इसे सभी विद्याओं में प्रवीण बनाना होगा।
इतना सुन गहनीनाथ को गोरखनाथ द्वारा उपदेश दिलवाया और सभी देवताओं के सम्मुख उसके मस्तक पर अपना वरहस्थ रखा। तब गोरखनाथ ने कुबेर से कहा कि आप ये स्वर्ण का पर्वत ले जाओ और बदले में वस्त्र और अलंकार आदि भिजवा दो जिससे मैं सभी आगंतुकों में बांटकर विदा कर सकूँ।
यह सुन कुबेर ने कहा कि मुझे यह धन नहीं चाहिये। मुझे आपकी आज्ञा का पालन करने में देर नहीं लगेगी। इतना कहकर कुबेर ने बहुत सारे वस्त्र और अलंकार अपने गुरू की सेवा में लगा दिये। उनको गोरखनाथ ने सभी सन्तों में बांटकर विदा किया।
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