Machander Nath Ki Kahani Bhag 18 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 18 || Machander Nath Ki Katha Bhag 18 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 18
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Machander Nath Ki Kahani Bhag 18 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 18 || Machander Nath Ki Katha Bhag 18 || मछंदर नाथ की कथा भाग 18
समारोह समापन के बाद मौनीनाथ को उपरिक्ष वसू के साथ संगल द्वीप भेज दिया गया। मैनाकिनी ने उसे क्यों उसके पिता को समर्पित किया था यह बात भी मौनीनाथ को समझायी। उपरिक्ष वसू मौनीनाथ के नानाश्री थे।
उपरिक्ष वसू ने कहा कि एक बार मछंदर नाथ से भेंट अवश्य होगी और यह सुनकर मैनाकिनी मौनीनाथ को प्यार कर खुशी-खुशी रहने लगीं।
इधर गहनीनाथ को शिक्षा देने के लिये गोरखनाथ और मछंदर नाथ गर्भादि पर्वत पर ही ठहर गये। शिवजी भी वहीं पर थे। उस सोने के पर्वत को अद्रव्यास्त्र की व्यवस्था कर कुबेर भी अपने स्थान को रवाना हुए। शिवजी उसी सोने के पर्वत पर आसन बिछा कर रहने लगे।
उसी पर्वत का नाम अब म्हावर देव है। कहते हैं कि महादेव अभी भी वहां विराजमान हैं। इसी के पश्चिम में कणिफानाथ रहा करते थे वह ग्राम अब मण्डी के नाम से प्रसिद्ध है। उस पर्वत के दक्षिण दिशा में मछेन्द्रनाथ विराजमान थे और पूर्व में जालन्धरनाथ जी।
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इसी पर्वत के दायीं ओर वडवानल ग्राम में नागनाथ का आसन है। बिटे ग्राम में सिद्ध रेवणनाथ का आसन है।
गर्भादि पर्वत के बायीं ओर गोरखनाथ ने महिनीनाथ को विधावान बनाया। उस बालक को एक वर्ष में निपुण करके मधुनामा पण्डित के पास भेज दिया। उसने काफी समय तक अपने माता और पिता की सेवा की और फिर बाद में तपस्या कर समाधि ले ली।
उधर कवरी घाट समाधि का उद्देश्य भी यही था कि कोई राजा यहां उपद्रव न करे। एक बार की बात है, महाराजा अकबर ने पूछा कि ये मठ कैसे हैं? तो उन्हें लोगों ने बताया कि ये आपके पूर्वजों के हैं। तब बादशाह ने पूछा कि इनके नाम क्या हैं?
तो बादशाह को बताया कि कन्होवा की जगह पर्वती (जानपरि), जालन्धर की जगह गोरिपरि, महिनीनाथ की जगह माया बावलेन। इस प्रकार के नाम रखे। मुसलमान मुल्ला को नौकर रखा। कल्याण कलयुगी बाबा की समाधि को रखवागसर रखा। और गोरखनाथ अपनी समाधि भूतों के सुपुर्द कर तीर्थ यात्रा पर निकल गये।
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