Machander Nath Ki Kahani Bhag 22 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 22 || Machander Nath Ki Katha Bhag 22 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 22
Machander Nath Ki Kahani Bhag 22 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 22 || Machander Nath Ki Katha Bhag 22 || मछंदर नाथ की कथा भाग 22
Machander Nath Ki Kahani Bhag 22 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 22 || Machander Nath Ki Katha Bhag 22 || मछंदर नाथ की कथा भाग 22
अवन्ती नगरी में विभद्रराज नामक राजा राज्य करता था। उसकी पुत्री का नाम मदन लेखा था जो बहुत सुंदर थी। वह अपने माता पिता की अकेली संतान थी। एक दिन राजकुमारी राजा की गोद में बैठी थी तो राजा ने सोचा कि राजकुमारी की शादी शीघ्र कर देनी चाहिये।
राजा ने अपने मन की बात अपने प्रधान से की। वे बोले कि अब आप राजकुमारी के लिये एक सुंदर वर की तलाश आरंभ करें। इस पर प्रधान ने कहा कि महाराज एक प्रार्थना मेरी भी है। मेरा कहना है कि आपकी वृद्धावस्था हो गयी है।
अब आपके पुत्र होने की भी कोई आशा नहीं है अत: बेटी के सुख को ही अपना ही सुख समझें और राजकुमारी के लिये एक सुंदर वर तलाशें। दामाद भी एक प्रकार का बेटा ही होता है।
उसे राजगद्दी सौंपने के बाद राज्य में काफी सुधार हो जाएगा। आप की सभी चिंताऐं भी दूर हो जायेंगी। तब राजा ने कहा कि प्रधान जी आपने एक दम उचित ही कहा है।
विदर्भराज ने विक्रम का राज्याभिषेक और दान-दक्षिणा दे धूमधाम से राजकुमारी मदनलेखा का विवाह कर दिया। फिर सत्यवर्मा ने मिथला का राजपाट छोड़कर विक्रम को सौंप दिया।
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सत्यवर्मा ने दोनों को आशीर्वाद दिया कि और बोले कि अब तुम दो राज्यों के सम्राट हो गए हो। ईश्वर तुम्हें चक्रवर्ती राजा बनाये और जब तक गंगा जमुना मे जल रहे तब तक तुम्हारा यश संसार में कायम रहे।
विक्रम ने भर्थरी को अपना युवराज बनाया। वे दोनों एक दूसरे की सलाह से कार्य करते थे। तब सुभमती प्रधान ने अपनी कन्या का विवाह भर्थरी से करना चाहा और विक्रम का कहना मानकर बात पक्की कर दी।
फिर भर्थरी की जाति पूछी गई तो सभी ने कहा कि यह कुम्हार है। यह सुन विक्रम बोले कि वह मेरा मित्र तो जरूर है पर यह बात मुझे मालूम नहीं है।
इस पर भर्थरी ने कहा कि मैं सूर्य पुत्र हूँ। तब प्रधान ने कहा कि अगर सूर्य तुम्हारे पिता हैं तो उन्हें सम्मानपूर्वक यहां बुलाओ।
यह सुन भर्थरी ने आकाश की ओर मुंह करके कहा कि हे पिताजी, मेरी शादी में विघ्न पड़ रहा है वो भी आपके कारण। आप एक बार आकर इनको यह बताओ कि मैं आपका पुत्र हूँ।
अपने पुत्र की प्रार्थना सुनकर सूर्यदेव अवंती नगरी को आ गये। इस प्रकार प्रधान का संदेह दूर हुआ। सभी देवताओं ने आकाश से पुष्प बरसाए। पुरोचन भी इसी उत्सव में आये थे। वे भी अपनी पत्नी सत्यवती और पुत्र विक्रम से मिलकर विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।
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फिर भर्थरी ने और भी 11 विवाह किये और इस प्रकार उनकी 12 रानियां हो गईं। पर मुख्य रानी पिगला ही थी। काफी समय के बाद एक दिन सूर्य ने भर्थरी को शिकार के लिये जाते हुए सूर्यदेव ने देखा।
सूर्यदेव ने सोचा कि मेरे दो पुत्र जीवित हैं। अगस्त्य तो ईश्वर भक्ति कर मुनि बन गया है। परंतु भर्थरी भोग-विलास में लिप्त होकर अपना भला-बुरा भी नहीं सोचता है। मुझे इसका कोई उपाय करना होगा।
अब सूर्यदेव ने पृथ्वी पर उतरकर भगवान दतात्रेय जी से भेंट की। तब दतात्रेय जी ने कहा कि आप चिंता न करें। उसका नाथपंथ में शामिल होने का योग बना हुआ है। तुम्हारा पुत्र अमर हो जाएगा। मैं उसे आशीर्वाद देता हूँ।
फिर सूर्य चले गये और भर्थरी वन में शिकार के लिये चले गये। वे अपने साथ सेना भी ले गये थे। बैसाख-जेठ का महीना था। सभी साथी प्यास के कारण व्याकुल थे। तब दतात्रेय जी ने एक मायावी सरोवर की रचना की। जहां ठण्डी हवा चल रही थी।
भर्थरी को परेशानी में घूमते हुए सुंदर सरोवर दिखाई दिया। भर्थरी अकेले ही वहां पानी पीने लगे तो उसने पूछा कि आपका गुरू कौन है? तो भर्थरी ने कहा कि मैंने अभी तक गुरू बनाया ही नहीं है।
तब दतात्रेय जी ने कहा कि अब तक तुमने गुरू ही नहीं बनाया है। इसी कारण तू पापी है। इस पानी को मत छूना। छूने से तालाब सूख जायेगा। और मैं श्राप देकर भस्म कर दूँगा।
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इस पर भर्थरी बोले कि अब आप मेरे गुरू बन मुझे उपदेश देकर मुझे पानी पिलावें। इस पर दतात्रेय जी बोले कि तू पापी होकर मेरा उपदेश सुनना चाहता है।
भर्थरी बोले कि हे स्वामी यह सब ठीक है पर आप तो दयालु हैं। दया और क्षमा आपके आभूषण हैं। आप कृपा कर मुझे पानी पीने दें। दतात्रेय जी बोले कि तू कहता है तो मैं तुझे उपदेश देता हूँ।
दतात्रेय जी बोले कि तू 12 वर्ष यहां रह। यह सुन भर्थरी बोले कि यहां मेरे प्राणों पर बनी हुई है और आपको वर्षों की पड़ी है। वे आगे बोले कि पहले तू दृढ़ निश्चय कर तभी मैं तुझे पानी पिलाऊँगा।
तुझे गृहस्थी की आशा त्यागनी होगी। यह सभी शर्तें तुझे स्वीकार हों तो बोल। तब भर्थरी ने दतात्रेय जी का कहना मान लिया और पानी पीकर उपदेश गृहण किया।
इसके बाद दतात्रेय जी वहां से गायब हो गए। फिर भर्थरी ने दतात्रेय जी की स्तुति गायी और उन्होंने भागीरथी गंगा से जल लाकर सबकी प्यास बुझाई। कामधेनु गाय से भोजन प्राप्त कर सभी सेना को जिमाया।
तब सभी भोजन से तृप्त होकर उज्जैन नगरी को गये और दतात्रेय जी कामधेनु को लेकर गंगा के तट पर जा अन्तर्ध्यान हो गये।
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