Machander Nath Ki Kahani Bhag 26 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 26|| Machander Nath Ki Katha Bhag 26 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 26
Machander Nath Ki Kahani Bhag 26|| मछंदर नाथ की कहानी भाग 26|| Machander Nath Ki Katha Bhag 26 || मछंदर नाथ की कथा भाग 26
Machander Nath Ki Kahani Bhag 26|| मछंदर नाथ की कहानी भाग 26|| Machander Nath Ki Katha Bhag 26 || मछंदर नाथ की कथा भाग 26
वीरभद्र के चले जाने के बाद भगवान शिव शोकमग्न बैठे थे तभी गोरखनाथ उनके चरणों में गिर पड़े और कहा कि वीरभद्र का आपको बहुत भारी दुख हुआ। अगर आप मुझे उसकी हड्डियां ला दें तो मैं उसे जीवित कर दूँगा।
तो शिव ने कहा कि मै उसकी हड्डियां ढूंढ कर लाता हूँ। इतना कह शिवजी अपने गणों सहित युद्ध क्षेत्र में गये और अपने गणों से बोले कि जो हड्डियां मेरे नाम का उच्चारण कर रही होंगी वही हड्डियां वीरभद्र की हैं।
फिर शिवजी उन हड्डियों को एकत्रित कर गोरखनाथ जी के पास गये। तब गोरखनाथ जी ने संजीवनी मंत्र को सिद्ध कर उसकी भस्मी वीरभद्र पर छिड़क दी। तभी उठकर वीरभद्र अपने तीर-बाण पूछने लगा।
वीरभद्र बोला कि मैं सभी राक्षसों को मार कर गोरखनाथ को भी यमलोक पहुँचा दूँगा। इसके बाद गोरखनाथ से उनकी मित्रता महादेव जी ने करवा दी व सारी बात समझायी।
इतने में शिवगण वहां आये और शिवजी को लेकर कैलाश चले गये। इधर मछेन्द्रनाथ के शरीर के टुकड़े लेकर गोरखनाथ शिवालय पहुँचे। उधर त्रिविक्रम राजा अपने भोग-विलास में मस्त थे।
एक दिन त्रिविक्रम राजा शिवालय में आये जहां गोरखनाथ अपने गुरू के शरीर के टुकड़े लेकर प्रतीक्षा कर रहे थे। राजा के कुशल समाचार पूछने के बाद सारी कहानी उन्हें गोरखनाथ ने बतायी।
अब राजा बोले कि तुम ठहरो मैं शीघ्र ही धर्मनाथ को राजगद्दी सौंप कर तुम्हारे पास आता हूँ। इस प्रकार गोरखनाथ को समझा कर राजा राजदरबार में चला गया। वहां जाकर शुभ मुहूर्त देखकर धर्मनाथ का राज्याभिषेक करवा दिया। उसने भिखारियों को खजाने में से धन भी बांटा और उन्हें खुश किया।
मछंदर नाथ ने त्रिविक्रम राजा का शरीर छोड़कर अपने शरीर में प्रवेश किया जिसको गोरखनाथ ने संजीवनी के प्रभाव से सही कर रखा था।
उधर राजमहल में जब रानी सोकर उठीं तो राजा का मृत शरीर पाकर वह जोर-जोर से रोने लगी। रानी का रोना सुनकर धर्मनाथ, प्रधान जी और अन्य दरबारी दौड़कर रानी के पास पहुँचे।
सभी राजा के शव को देखकर हा-हाकार करने लगे। इधर मछंदर नाथ उठकर बैठे। राजा का दाह संस्कार हुआ और रानी को धीरज बंधा कर सभी लोग अपने-अपने घरों की ओर जाने लगे।
Guru Machander Nath Ki Katha || गुरू मछंदर नाथ की कथा || Baba Machander Nath Ki Kahani || Machander Nath Ki Kahani Bhag 26
तभी रानी, मछंदर नाथ का पता लगाने शिवालय तक पहुँची। रानी ने बेटे को समझाया कि तू चिन्ता मत कर तेरे पिता चिरंजीवी मछंदर नाथ हैं। तुम स्वयं शिवालय जाकर उनके दर्शन कर आओ।
तब धर्मनाथ ने अपनी माता से पूछा कि मछंदर नाथ किस प्रकार मेरे पिता हुए? तो रानी ने अपने बेटे को सारी कथा कह सुनाई। इतना सुन वह शिवालय में जा पहुँचा और मछंदर नाथ के कदमों में गिर गया।
वह पालकी में बैठाकर अपने पिता को दरबार में लाया और खूब खातिरदारी कर उनकी सेवा सत्कार किया।। उसके बाद मछंदर नाथ, गोरखनाथ और चौरगीनाथ काफी दिन वहां रहकर तीर्थयात्रा को चल दिये।
उनसे बिछड़ कर धर्मनाथ को काफी दुख हुआ और उसने भी साथ ही चलने की जिद की तो मछंदर नाथ बोले कि बेटा अभी तो तुम राज-काज करो। 12 वर्ष बाद हम आयेंगे और फिर गोरखनाथ से तुझे दीक्षा दिलवाएंगे। ऐसा कहकर तीनों संत चले गये।
वे तीनो गोदावरी के किनारे धामनगर जा पहुँचे। तब गोरखनाथ को उस किसान की याद आयी। तब गोरखनाथ ने उस लड़के से हुई सारी बातें बतायी और उस खेत को ढूंढते हुए तीनों संत वहां जा पहुंचे।
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तब उन्होंने उस बालक को पत्थर पर खड़ा देख ओम नम: शिवाय का जाप करते देखा। तब मछंदर नाथ ने गोरखनाथ से पूछा कि क्या यह वही बालक है?
तब तीनों संत उस बालक के पास गये उस बालक ने कहा कि तुम यहां से जाओ तो दोनों मछंदर नाथ और चौरगीनाथ एक पेड़ के नीचे जाकर ठहर गये। तब गोरखनाथ बालक के सामने जाकर खड़े हो गये और जोर से हंसकर कहा –
हाहा हाहा ऐसा तपस्वी मैंने अब तक नहीं देखा है। आप मुझे उपदेश दें।
यह सुन वह लड़का बोला –
बेटा तू इतना बड़ा हुआ पर फिर भी अकल तुझ से कोसों दूर है। तुम मुझे गुरू बनाने के बजाय मेरे ही गुरू क्यों नही बन जाते? तब गोरखनाथ ने उसे मंत्रों का उपदेश दिया और उसे सारा संसार त्रिकालदर्शी और ब्रह्ममयी दिखाई देने लगा।
वह तप छोड़कर गोरखनाथ के कदमों में गिर पड़ा। गोरखनाथ ने शक्ति मंत्र की भस्मी उसके शरीर पर छिड़क दी जिससे वह तरोताजा हो गया। तब उसका हाथ पकड़कर मछंदर नाथ के निकट ले गये।
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योगीराज ने उस बालक का अजीब स्वभाव देखकर उसका नाम अडभगनाथ रख दिया। उसे दीक्षा देकर चारों संत एक साथ चल दिये। गोरखनाथ ने अपने शिष्य को सर्व वि़द्या संपन्न बना दिया और फिर वे तीर्थयात्रा करते हुए 12 वर्षों के बाद प्रयागराज आए।
इधर धर्मनाथ के पुत्र हो गया था जिसका नाम विक्रमनाथ रखा गया। जब धर्मनाथ को चारों संतों के आने का पता लगा तो वह उन्हें राज्यसभा में बुलाकर ले आया।
राजा धर्मनाथ ने अपने बेटे को सिंहासन पर बैठाकर स्वयं दीक्षा लेने का निश्चय किया। माह मास की द्वितीया को जिसे धर्मबीज भी कहते हैं को गोरखनाथ ने धर्मनाथ को दीक्षा दी। उस समय वहा सभी देवता पधारे हुए थे।
गोरखनाथ की आज्ञा विक्रमनाथ ने स्वीकार कर ली इससे देवताओं को भारी खुशी हुई। गोरखनाथ ने गोरखसार में लिखा भी है कि जो कोई भी धर्मबीज वृत को करता है उसके घर लक्ष्मी जी सदा निवास करती हैं।
धर्मनाथ को दीक्षा देकर चारों संत उसे लेकर तीर्थयात्रा करते हुए बद्रिकाश्रम ले गये और वहां शिवजी के चरणों में डाल दिया। उसे तपस्या करने को बैठा दिया। और कहा कि तुम तन मन से तपस्या और ध्यान करना हम 12 वर्ष बाद आयेंगे।
ब्रह्मदेव के वीर्य का थोड़ा सा अंश रेवा नदी के किनारे भी गिरा हुआ था जिसमें चमस नारायण का संचार हुआ और उससे पुतले का निर्माण हुआ। वह सूर्य के समान तेजस्वी होकर रो रहा था।
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उसी समय एक व्यक्ति वहां पानी लेने आया और उसने वहां एक बच्चे को देख उसे गोद में उठा लिया और घर ले जाकर अपनी पत्नी को दिया। उसने कहा कि यह बालक मुझे रेवा नदी के तट पर पड़ा मिला है।
अत: इसका नाम हम रेवणनाथ रखेगे। और वहां उसका लालन पालन बच्चे की तरह होने लगा। वह बालक थोड़ा बड़ा होने पर अपने पिता के साथ खेत पर जाने लगा। एक दिन सुबह उसकी मुलाकात दतात्रेय जी से हुई।
उन्हें देखकर उसे अपने पूर्व जन्म की याद आयी। उसने कहा कि मैं अज्ञान में पड़ा हूँ। मेरा उद्धार कैसे हो? तब दतात्रेय जी ने कहा कि तुम्हारी आत्मा में तीन देवताओं का वास है। उसमें जो सत्गुणी पुरूष है वही मैं होकर काफी कष्ट भोग रहा हूँ।
अब आप दया कर कृपया इस शरीर को सनाथ कीजिये। बालक का निश्चय देख कर दतात्रेय जी ने अपना हाथ उसके माथे पर रखा। वह बोले कि नवतारा ग्रहों में यह अवतार नारायण का है। भक्ति ज्ञान में ध्यान होने से ज्ञान वैराग सहज ही प्राप्त हो जाते हैं।
इस प्रकार उसे एक कला सिद्धि कर सिखायी और तब उसे बड़ी खुशी हुई और वह उनके कदमों में गिर गया। तब दतात्रेय जी उसे आशीर्वाद देकर चले गये।
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