Machander Nath Ki Kahani Bhag 27 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 27|| Machander Nath Ki Katha Bhag 27 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 27
Machander Nath Ki Kahani Bhag 27 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 27|| Machander Nath Ki Katha Bhag 27 || मछंदर नाथ की कथा भाग 27
Machander Nath Ki Kahani Bhag 27 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 27|| Machander Nath Ki Katha Bhag 27 || मछंदर नाथ की कथा भाग 27
रेवड़नाथ सिद्धि में गलती कर बैठा तब दतात्रेय जी उसे सही रास्ते पर लेकर आये। इसके बाद रेवणनाथ खेत पर गया और कार्य समाप्त कर मंत्र प्रयोग करके नाचने लगा।
तब स्वयं सिद्धि उसके सामने आकर प्रकट हुईं। सिद्धि ने रेवणनाथ से पूछा कि तुमने मुझे किस प्रकार याद किया है? तब उस बालक ने उसका नाम पूछा और उसने अपना नाम सिद्धि बताया।
सिद्धि बोलीं कि दतात्रेय जी ने तुम्हें जो ज्ञान दिया था उसी कारण से आज मैं तुम्हारे सम्मुख प्रकट हुई हूँ। अब तू जो भी कहेगा वह क्षण मात्र में पूर्ण हो जावेगा।
सिद्धि की बाते सुनकर रेवड़नाथ को घमण्ड हो गया परंतु फिर भी वह नम्र स्वभाव का था। रेवड़नाथ सूर्यास्त के समय घर आया और बैलों को बांधकर दूसरे दिन खेतों पर नहीं गया।
तब उसके पिता ने उसे खेतों पर जाने को कहा तो रेवणनाथ ने बोला कि क्यों फालतू बातें करते हो? जरा घर के अंदर जाकर तो देखो। तब उसके पिता ने घर के अंदर जाकर देखा तो अनाज के ढेर की जगह सोना मिला पाया।
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उसने अपने बेटे से कहा कि यह तो एकदम सच प्रतीत होता है। और उस दिन से वह अपने बेटे के कहे अनुसार चलने लगा। इसके बाद रेवणनाथ ने गांव में आने जाने वालों के लिये भोजन दवा और पानी की व्यवस्था की।
रेवणनाथ का यश दूर-दूर तक फैलने लगा। लोग अब उसे रेवणसिद्धि के नाम से पुकारने लगे। कुछ दिन बाद तीर्थ यात्रा करते हुए मछंदर नाथ वहां की धर्मशाला में ठहरे।
मछेन्द्रनाथ दतात्रेय जी का स्मरण कर रहे थे और तब लोगों ने भोजन पाने के लिये रेवणनाथ का घर बताया। फिर मछंदर नाथ जंगल व पशु-पक्षियों का निर्माण कर उन्हें अपने शरीर पर खिलाने लगे।
ग्रामवासियों ने जाना कि यह अवश्य ही कोई अवतारी पुरूष है। जब लोगों ने यह बात रेवणनाथ को बतायी तो वे उन्हें देखने के लिये आये और मछंदर नाथ को देख उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।
रेवणनाथ ने अपने घर पहुँच कर दतात्रेय जी का प्रयोग किया तो सिद्धि प्रत्यक्ष आकर खड़ी हो गयी और बोली कि क्या आज्ञा है? तब रेवणनाथ बोले कि मछंदर नाथ के समान सभी पशु-पक्षी द्वेष छोड़कर मेरे साथ भी खेला करें।
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यह सुन सिद्धि बोलीं कि ब्रह्मा जी को छोड़कर यह कार्य किसी और के वश में नहीं है। तब रेवड़नाथ बोले कि तुम मुझे ब्रह्मदेवता ही बना दो। तब यह सुन सिद्धि बोली कि यह सामर्थ्य तो केवल तुम्हारे गुरू दतात्रेय जी को ही है।
उधर मछेन्द्रनाथ ने सभी सिद्धियों को अपने पास बुलाकर पूछा कि रेवणनाथ के पास कौनसी सिद्धि किसने तैनात की है? यह सुन महिमा सिद्धि बोली कि उनके पास रहने को मुझे दतात्रेय जी से आदेश मिला है।
यह सुन मछंदर नाथ ने सोचा कि रेवणनाथ तो अपना गुरू भाई ही निकला। और वे फिर दतात्रेय जी से जाकर मिले। फिर मछंदर नाथ बोले कि आप उसे दर्शन देकर उसकी इच्छा पूर्ण करे जहां आपकी उससे मुलाकात हुई थी।
इतना सुन दतात्रेय मछंदर नाथ को अपने साथ ले पानास्त्र की सहायता से रेवणनाथ के नजदीक जा पहुँचे। उसे लकड़ी के समान सूखा देख की दतात्रेय जी को दया आ गयी।
रेवणनाथ ने अपने गुरू के चरणो में मस्तक रखा और तब दतात्रेय जी ने उसके कान में मंत्र उपदेश दिया। तब जाकर उसके अज्ञान का अंत हुआ और फिर वज्रशक्ति की पूजा कर दतात्रेय ने रेवणनाथ के माथे पर भस्मी मली जिससे उसमें पूर्ण शक्ति आ गयी।
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इसके बाद दतात्रेय जी रेवणनाथ और मछंदर नाथ को अपने साथ ले जाकर गिरनार पर्वत पर गये। वहां पर रेवड़नाथ को शस्त्रास्त्र सहित सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। वे बोले कि हम सब एक ही परमात्मा के रूप हैं।
दतात्रेय जी ने उसे नाथपंथ की दीक्षा देकर सभी विद्याओं में परिपूर्ण कर दिया। बाद मे वह मार्तण्ड पर्वत पर गये और नागेश्वर स्थान देखा और देव दर्शन कर वरदान प्राप्त कर सावरी मंत्रों की प्राप्ति की।
सांवरी विद्या में निपुण होकर रेवणनाथ ने ब्रह्मभोज करने का विचार किया। उस समय ब्रह्मा, विष्णु और महादेव सभी रेवणनाथ के यहां पधारे। यह उत्सव सात दिन तक चला। सारे देवता रेवणनाथ को वरदान देकर अपने-अपने स्थान को रवाना हो गये।
अब अपने गुरू दतात्रेय जी से आज्ञा पाकर रेवणनाथ तीर्थयात्रा पर निकल गये।
मान दीप के नजदीक एक पिटे नामक ग्राम है जहां सारसुत नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम जाह्नवी था। दोनों का आपस में भारी प्रेम था परंतु उसके बालक जन्म के 7-8 दिनों के अंदर मर जाया करते थे।
उसका सातवां बालक दस वर्ष तक जीवित रहा तब ब्राह्मण ने भय मुक्त होकर खुशी से बिरादरी भोज किया। तभी उसी समय रेवणनाथ पधारे। तो ब्राह्मण ने सोचा कि अवश्य ही कोई महापुरूष होंगे।
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तब ब्राह्मण ने रेवणनाथ से कहा कि आप भोजन करके जायें। और वे ब्राह्मण बोले कि संत से बड़ी जाति तो परमात्मा की भी नहीं होती है। फिर ब्राह्मण रेवणनाथ को अपने घर ले गया।
उसने पूरे सेवा भाव से संत को जिमाया और उनसे रात्रि को ठहरने की प्रार्थना की। तब रेवणनाथ उसका प्रेम देखकर उसके घर ठहर गये। पंडित जी ने उस संत के चरण दबाये।
तभी आधी रात को ब्राह्मण के बच्चे के प्राण निकल गये और ब्राह्मणी रोने लगी। जब सुबह संत जी ने घर के अंदर रोने की आवाज सुनी तो उनहोंने पूछा कि अंदर कौन रो रहा है?
यह सुन ब्राह्मण बोला कि रात्रि को मेरे पुत्र के प्राण यमराज ले गये। इसके साथ ही पिछले पुत्रों की भी सारी घटनायें उन्हें बतायीं। तब रेवणनाथ ने ब्राह्मण से कहा कि तुम अब तीन दिन तक बच्चे को रखो मैं आता हूँ।
इसके बाद रेवणनाथ तुरंत यमपुरी गये और प्रश्न किया तो उन्होंने कहा कि यह हमारे बस की बात नहीं है अत: आप कैलाश पर्वत पर जाइये। तब रेवणनाथ कैलाश पर्वत पर गये।
कैलाश के द्वारपालों ने रेवणनाथ को अंदर ही नहीं जाने दिया। इस रेवणनाथ उन द्वारपालों को जमीन से चिपकाकर अंदर चले गये। शिवजी ने अष्टभैरवों को भी भेजा परंतु वे भी रेवणनाथ के आगे टिक न सके।
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इसके बाद महादेव बैल पर सवार होकर खुद आये तो रेवणनाथ ने सोचा कि इनसे युद्ध न करके शांति से काम किया जाये। रेवणनाथ ने वाताकर्षणास्त्र की भस्म मंत्रित कर शिवजी पर फेंकी जिससे उनका श्वास बन्द हो चला।
शिवजी बैल से गिर पड़े तभी विष्णु भगवान वहां दौड़कर आये और रेवणनाथ को गले लगाकर बोले कि तुमने किस कारण से यहां आकर ये सब किया है?
तब रेवणनाथ बोले कि प्रभु ब्राह्मण के सातों पुत्र यम को प्राप्त हो गये। तभी प्ररकशस्त्र की योजना कर शंकर जी को होश आया और विभक्तास्त्र को जपकर अष्टभैरवों पर छिड़का तब वह अस्त्रों से मुक्त हुये।
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