Machander Nath Ki Kahani Bhag 29 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 29|| Machander Nath Ki Katha Bhag 29 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 29
Machander Nath Ki Kahani Bhag 29 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 29|| Machander Nath Ki Katha Bhag 29 || मछंदर नाथ की कथा भाग 29
Machander Nath Ki Kahani Bhag 29 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 29|| Machander Nath Ki Katha Bhag 29 || मछंदर नाथ की कथा भाग 29
कुछ दिनों के बाद वटनाथ और दतात्रेय जी काशी को रवाना हो गये। चलते समय दतात्रेय जी ने वामनस्य से भस्मी आमंत्रित की और वटनाथ के माथे पर मल दी और ऐसा करने से वे क्षण भर में काशी जा पहुँचे।
शिवजी ने दतात्रेय जी से पूछा कि यह दूसरा आपके साथ कौन है? तब वे बोले कि यह ऐरहोत्र नारायण के अवतार हैं और एक नागिन के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम नागनाथ है। इसके वृक्ष में जन्म लेने के कारण कुछ लोग इसे वटनाथ के नाम से भी बुलाते हैं।
तब उसे दीक्षा देकर नाथ पंथ में शामिल करने के लिये शिवजी ने कहा और 6 माह वहां रहकर सारी वि़द्याएं सिखाईं तथा 64 कलाओं से उसे अवगत कराया।
इसके बाद नागरवस्ती जाकर सारी साधनायें सिद्ध करायी। तत्पश्चात दतात्रेय जी उसे बद्रिकाश्रम ले गये और वहां उसे तपस्या करने के लिये बैठाया। वहां उन्होंने 12 वर्षों तक कठिन तपस्या की। सभी देवताओं से वरदान प्राप्त किये।
तब उसने वहां पर ब्रह्मभोज करवाया और सभी विद्वान जीम कर अपने अपने घर पधारे। तब दतात्रेय जी ने उसे तीर्थ यात्रा को रवाना किया। उसके बाद दतात्रेय जी गिरनार पर्वत पर जाकर विराजे।
Guru Machander Nath Ki Katha || गुरू मछंदर नाथ की कथा || Baba Machander Nath Ki Kahani || Machander Nath Ki Kahani Bhag 29
इधर नागनाथ यात्रा करते हुए बालाजी घाट जा पहुँचे जहां उनके दर्शनों की अपार भीड़ आने लगी। तभी वहां पर यात्रा करते हुए मछंदर नाथ भी आ पहुँचे।
वे नागनाथ का नाम सुनकर उनके दर्शनों को आये तभी द्वार पर खड़े उनके शिष्यों ने योगी को रोक लिया और कहने लगे- नाथ बाबा आगे मत बढ़ो। पहले हमे गुरूजी से आज्ञा ले आने दो।
जब शिष्य न माने तो मछंदर नाथ ने उन्हें स्पर्शास्त्र के योग से धरती से चिपका दिया। वे सब रो-रोकर शोर करने लगे। इधर नागनाथ अपने मठ में निश्चिंत बैठे थे।
तभी अपने शिष्यों की दशा देखकर क्रोध में उन्होंने गरूड़ बंधन किया और विभक्तास्त्र जपकर अपने शिष्यों को आजाद किया। तब सभी शिष्य अपने गुरू के पीछे भयभीत खड़े हो गये।
तब सभी को खत्म करने के लिये मछंदर नाथ ने पर्वतास्त्र छोड़ा और नागनाथ को ज्ञात हुआ कि हमारे ऊपर एक विशाल पर्वत आ रहा है। तब उन्होंने वज्रास्त्र छोड़ा। तब उस बड़े पर्वत का चूरा हो गया।
इस प्रकार दोनों योगी एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिये वीरता से लड़ रहे थे। आखिर मे नागनाथ ने स्पर्शास्त्र छोड़ा और तब मछंदर नाथ ने सर्पों को आता देखकर गरूड़ अस्त्र की योजना की लेकिन गरूड़ को गरूड़ास्त्र की योजना से नागनाथ ने पहले ही बांध दिया था।
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इसीलिये परेशान होकर मछंदर नाथ ने अंत में अपने गुरू दतात्रेय जी को याद किया। वे बोले कि गुरूदेव शीघ्र आ जाओ। दतात्रेय जी का नाम सुनते ही नागनाथ हैरान रह गये और मछंदर नाथ के निकट आ गये।
वे बोले कि मेरा नाम नागनाथ है और मैं दतात्रेय जी का शिष्य हूँ। मछंदर नाथ ने उत्तर दिया कि जालंधरनाथ, रेवणनाथ भी दतात्रेय जी के शिष्य हैं परंतु मैं दतात्रेय जी का सबसे पहला शिष्य हूँ। इसी कारण से मैं, मछेनद्रनाथ तुम्हारा बड़ा गुरू भाई हुआ।
इतना सुन नागनाथ ने मन में पछतावा करके तुरंत गरूड़बंधन को तोड़ा और गरूड़ धरती पर आ गये और सर्प उन्हें देख अपने काटे का विष स्वयं पीकर नौ-दो ग्यारह हो लिये। इस सबके बाद दोनों योगी गले मिले और गरूड़ ने भी दोनों नाथों को नमस्कार किया स्वर्गलोक को चले गये।
दोनों ही योगी अब मठ में चले गये और एक माह तक योग चर्चा में मग्न रहे। इधर नाथ के दर्शनों के लिये अपार भीड़ लगने लगी। तभी उनके एक शिष्य की पत्नी मठ में ही मर गयी और उसे अपने योगबल से जीवित कर दिया।
फिर वहां जिसकी भी मृत्यु होती, नाथ उसे जिंदा कर देते। ऐसे में यमराज धर्मसंकट मे पड़ गए और उन्होंने ब्रह्माजी को पूरी स्थिति से अवगत कराया। तब अंत में ब्रह्मा जी खुद वहां आये और उन्होंने प्रार्थना कर यह कार्य बंद करवाया।
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