Machander Nath Ki Kahani Bhag 31 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 31|| Machander Nath Ki Katha Bhag 31 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 31
Machander Nath Ki Kahani Bhag 31 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 31|| Machander Nath Ki Katha Bhag 31 || मछंदर नाथ की कथा भाग 31
Machander Nath Ki Kahani Bhag 31 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 31|| Machander Nath Ki Katha Bhag 31 || मछंदर नाथ की कथा भाग 31
चरपटीनाथ ने सारे तीर्थों की यात्रा कर स्वर्ग पाताल की यात्रा के लिये बद्रीनाथ धाम पहुँचकर महादेव जी के दर्शन किये और यानास्त्र की सिद्धि प्राप्त कर मस्तक पर भस्मी मली। पहले सत्य लोक और फिर स्वर्गलोंक पहुँचे।
तब ब्रह्माजी ने नारद जी से पूछा कि यह योगी कौन है? तब नारद जी ने उसका नाम बताया और उसके जन्म की सारी कथा कह सुनायी। तब ब्रह्माजी ने सत्यलोंक आने का कारण पूछा तो नारद जी ने कहा कि वह आपके दर्शनों के लिये आया है।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें एक वर्ष तक अपने पास रोके रखा और तब नारद जी और चरपटीनाथ दोनों भाई साथ-साथ रहने लगे।
एक दिन नारद मुनि इंद्रपुरी को गये। तब इंद्र ने धीरे से नारद जी से कहा कि आइये कलि के मुनि। यह शब्द सुनकर नारदजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने मन में विचारा कि इस घमण्डी को यदि नीचा न दिखाया तो मेरा नाम भी नारद नहीं।
कुछ दिन बाद नारद और चरपटीनाथ ने इंद्र से बदला लेने की ठानी और वे दोनो इंद्र के बगीचे मे जा पहुँचे। चरपटीनाथ धीरे-धीरे चल रहे थे तो नारद जी कहने लगे कि इतने धीरे क्यों चल रहे हो?
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इस पर चरपटीनाथ बोले कि जिसकी जैसी चाल होगी वह वैसे ही तो चलेगा। इस पर नारद जी ने विष्णु भगवान द्वारा दी हुई गवनकला चरपटीनाथ को अर्पण की। इस कला से जिसको जहां जाना हो वह वहां जा सकता है।
त्रिभुवन में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी तुरंत ही प्राप्त हो जाती है। किसकी आयु कितनी है सब कुछ ज्ञात हो जाता है। गमन कला को प्राप्त करने पर चरपटीनाथ को बड़ा आनन्द आया।
इ्ंद्र के बगीचे के फलों को देखकर नारदजी बोले कि यदि इच्छा है तो फल खा लो। तब योगी ने फल तोड़कर खाये और जो फूल वहां गिरे वे ब्रह्मा जी के पास ले जाकर रख दिये।
इस तरह वे हर रोज फल खाते और फूल तोड़कर साथ ले जाते। ऐसा हर रोज करने से बगीचे को काफी हानि होने लगी। इंद्र यह पता नहीं कर पा रहे थे कि बगीचे को कौन उजाड़ रहा है?
एक दिन पहरेदार पहरे पर था। तभी दोनों वहां आये और चरपटीनाथ ने जैसे ही फलों की तरफ हाथ बढ़ाया तो पहरेदार ने उनहें पीटना शुरू कर दिया। और तभी नारदजी सत्यलोक को भाग गये।
चरपटीनाथ को बहुत क्रोध आया और उन्होंने वाताकर्षण का मंत्र जपकर भस्मी फैंकते ही सारे रक्षकों की नाडि़यां जकड़ गयीं और वे फड़फड़ाने लगे। यह हाल बचे हुए रक्षकों ने इंद्र से जाकर कहा।
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इधर इंद्र भी देवसेना लेकर युद्ध के लिये आ गये। इंद्र की अपार सेना देखकर चरपटीनाथ ने वाताकर्षण से समाप्त करने की योजना बना कर मंत्र प्रयोग किया जिससे सारी देवसेना छटपटाने लगी।
कुछ देर बाद इंद्र ने अपने दूतों को भेजा ताकि वहां का हाल जान सकें। दूत ने बोला कि एक योगी वहां खाली हाथ खड़ा है और आपकी सेना बुरी तरह छटपटा रही है। आप वहां हरगिज नहीं जाना। जो भी कार्य करना हो वह यहां बैठे-बैठे ही करना।
जब तक शंकर जी से सहायता प्राप्त करने वे कैलाश पर्वत पर जा पहुँचे और शिवजी के कदमों में जा गिरे और सारा हाल कह सुनाया। इस पर शिवजी ने पूछा कि अपने दुश्मन का मुझे तनिक नाम तो बतायें।
तब इंद्र बोले कि मैं तो भय के कारण उस योगी के पास ही नहीं गया। इतनी बातें सुनकर शिवजी अपने गणों को वहां भेजते हैं। शिवजी भी साथ में जाते हैं।
चरपटीनाथ ने वाताकर्षण मंत्र जपकर भस्मी फैंकी। तभी महादेवजी समेत भारी सेना की वही गति हुई जो इंद्र की सेना की हुई थी। इधर नारद जी को बड़ी हंसी आयी और मन में भारी आनन्द मनाया। बाद में शिव दूतों ने यह सूचना भगवान विष्णु को दी।
तब विष्णु भगवान खुद वहां चलकर आये और महादेव जी को मूर्च्छित देखकर सुदर्शन चक्र छोड़ा और देवों को युद्ध करने की आज्ञा दी। तो योगी ने मोहनास्त्र की योजना सुदर्शन पर की और वाताकर्षण मंत्र की भस्मी फैंकते ही विष्णु दूतों की भी वही दशा हुई।
इधर सुदर्शन चक्र भी मोहनास्त्र के आगे गलत साबित हुआ और पिप्लायन नारायण अवतार होने के कारण सुदर्शन चक्र ने चरपटीनाथ को नमस्कार किया। नाथ के हाथ में सुदर्शन आने से विष्णु ही विष्णु दिखायी देने लगे।
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तब नाथ ने वाताकर्षण की योजना की जिससे विष्णु जी पछाड़ खा कर गिर पड़े और उनकी गदा, शंख, मुकुट और चक्र सभी नाथ के पास आ गये। जब ब्रह्मा जी ने शंकर जी और महादेव जी के श्रंगार चरपटीनाथ के पास देखे तो वे समझ गये कि कोई तो गड़बड़ जरूर है।
तब उन्होंने चरपटीनाथ से प्रेम से कहा कि बेटा विष्णु तो दादाजी हैं और शिवजी हम दोनों के अराध्य देव हैं। ये तो सारे संसार के विधाता हैं। यदि इन दोनों की मृत्यु हो गयी तो सारा ब्रह्माण्ड समाप्त हो जायेगा।
इसीलिये शीघ्र जाकर तू उन्हें होश में ला। नहीं तो मुझे भी मार डाल। ऐसा कहने पर वे दोनों शीघ्र ही अमरावती गये और संत ने अपनी माया समेट ली और वाताकर्षण निकल गया।
तब ब्रह्माजी ने चरपटीनाथ को शंकर जी के कदमो मे डाला और उसके जन्म की सारी कथा सुनायी। शंकर जी और विष्णु जी की सारी वस्तुएं उन्हें वापिस दिलायीं। तब नारद जी वीणा बजाते हुए इंद्र के पास पहुँचे और उन्हें बताया कि तुमने जो मेरा उपहास किया था इसी कारण तुम्हारी यह दशा हुई है।
अब आगे से किसी संत की हंसी मत उड़ाना। नारद जी की बातें सुनकर इंद्र शर्मिन्दा हो गये और अपने दोनों हाथ जोड़कर नारदजी से क्षमा मांगी।
बाद में ब्रह्मा जी ने चरपटीनाथ को एक पर्वत पर ले जाकर स्नान करवाया। इसके बाद पृथ्वी के कुछ खास स्थल पर तीर्थ कर चरपटीनाथ पाताल घूम कर राजा बली के महल मे गये।
वहां उनका खूब आदर सत्कार हुआ और फिर वे मृत्युलोक में लौट गये।
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