Machander Nath Ki Kahani Bhag 4 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 4 || Machander Nath Ki Katha Bhag 4 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 4
Machander Nath Ki Kahani Bhag 4 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 4 || Machander Nath Ki Katha Bhag 4 || मछंदर नाथ की कथा भाग 4
Machander Nath Ki Kahani Bhag 4 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 4 || Machander Nath Ki Katha Bhag 4 || मछंदर नाथ की कथा भाग 4
सूत्र देव से वरदान पाकर योगी कांच की बोतल में जल भरकर महेन्द्र पर्वत पर पहुँचे। वहां जाकर आशतत्व के वृक्ष को प्रणाम किया और सूत्रदेव का स्मरण कर जल छोड़ दिया। ऐसा करते ही वहां सूत्रदेव प्रकट हो गए। सूत्रदेव ने पूछा कि मुझे कैसे स्मरण किया?
तब योगी ( Machander Nath) ने प्रणाम कर कहा कि प्रभु मेरी इच्छा सावरी मंत्र की कविता करने की है। यह सुन सूत्रदेव प्रसन्न हो गए। वे योगी की इच्छापूर्ति के लिये दिलोजान से सहायक हो गए। इस प्रकार देवता 7 महीने और 13 दिन में खुश हो गए। इस प्रकार सावरी मंत्र की कविता तैयार हो गई।
योगी तीर्थ यात्रा करते हुए धारा नगरी में जा पहुँचे। उस जगह पर सूर्यदलाल नामक एक पण्डित रहता था। वह ईश्वर का परम भक्त और साधु-सन्तों का सच्चा सेवक था। उसकी धर्मपत्नी का नाम सरस्वती था। ये दोनों प्राणी अपनी सामर्थ्य के अनुसार नित्य प्रति साधु-सन्तों की सेवा में लगे रहते थे।
जब भगवान की कृपा का दिन आया तो एक दिन योगी भिक्षा पात्र उठाये चिमटा बजाते हुए सरस्वती के दरवाजे पर जा पहुँचे। सरस्वती ने भिक्षा लाकर उसके पात्र में डालकर योगी का सूर्य के समान चमकता चेहरा निहारने लगी।
पतिव्रता की इच्छा को समझते हुए योगी को समझने में समय नहीं लगा। योगी ( Machander Nath) पूछने लगा कि माताजी आप कौन से दुख से दुखी हो? क्या मुझे बताओगी?
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इतना सुन सरस्वती बोली-
सन्त जी वैसे तो सब जगह ईश्वर की कृपा है लेकिन दुख तो सिर्फ एक संतान का है। अगर आप मुझे एक बेटा दे दें तो मैं सुखी हो जाऊँगी। योगी से इतना कहकर वह रोने लगी।
योगी से जब नारी का निराश चेहरा देखा नहीं गया तो खुशी मन से अपनी झोली में से भस्मी निकालकर पतिव्रता से बोले कि इस भस्मी को ऋतु स्नान करने के बाद इस भस्मी को खीर में मिला प्रभु का नाम लेकर खा लेना।
फिर यहां हरिनारायण का अवतार होगा। बारह वर्ष पश्चात मैं इसी प्रकार भ्रमण करता हुआ आऊँगा और तभी तुम्हारे पुत्र को अपना शिष्य बनाऊँगा।
सरस्वती ने भस्मी लाकर घर में रख दी और मन में विचारा कि ऋतुवन्ती होने के बाद इसे खा लूँगी। जब वह अपने घर के कामकाज समाप्त कर अपनी सखियों के पास चली गयी तो उनमें से एक स्त्री बोली कि बहन उसमें जहर भी तो हो सकता है। उसे न खाना।
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उसे खाने से मृत्यु भी हो सकती है। अगर ऐसी भस्मी से बांझपन दूर होता तो हमारे देश में यह बांझपन किसी को न होता। वैसे भी कलियुग में ढोंगियों की कोई कमी नहीं है। हे बहन, सच्चे भक्त तो दिन रात तप करते हैं। उन्हें जनता से क्या लेना देना?
वे तो अपने कार्य में लीन ही रहते हैं। उनमें से एक ने भी भस्मी खाने की सलाह न दी। उसने सोचा कि ऐसी अप्रिय घटनायें दिनरात होती तो रहती हैं।
उसने घर जाकर भस्मी को गोबर के गड्ढे में पड़ोसनों के बहकावे में आकर फेंक दी। जब समय पूरा हो गया तो योगी आया और सरस्वती ने योगी को पहचान लिया।
जैसे ही भिक्षा पात्र देने के लिये अपना हाथ बढ़ाया तो योगी ( Machander Nath) अपना भिक्षा पात्र पीछे करने लगा।
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योगी ने कहा कि-
माता अब तो आपका लड़का बड़ा हो गया होगा। क्या मैं आज उसके दर्शन कर सकूँगा? सरस्वती के मुंह से एक आवाज भी न निकली। वह एक बहुत बड़े धर्म संकट में फंस गयी।
तब योगी ने पूछा कि माता, क्या संतान पैदा नहीं हुई है? अन्त में बेचारी को सच सच ही कहना पड़ा। उसने योगी को कहा कि मैंने तो सखियों के बहकावे में आकर भस्मी को इस गड्ढे में फेंक दिया है।
तब योगी ने आवाज दी कि हे बद्रीनारायण सूर्य पुत्र यदि तुम्हारी उत्पत्ति हो गई है तो बाहर आ जाओ।
गड्ढे में से आवाज आई कि जी मैं पैदा तो हो चुका हूँ पर इस गोबर के ढेर से बाहर निकल पाने में असमर्थ हूँ। आप मुझे यहां से निकलवाने की कृपा करें। ढेर में से बालक की आवाज सुनकर सरस्वती और अन्य नगरवासियों के मन में उत्साह जाग गया।
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वे सभी कूड़ा हटाने में जुट गए। कुछ देर बाद गड्ढे में से एक अति सुंदर बालक निकला। उस बालक को देखकर मछंदर नाथ ( Machander Nath) बोले कि तुम्हारी उत्पत्ति गोबर से हुई है इसीलिये तुम्हारा नाम मैं गोरखनाथ रखता हूँ।
बालक आंखों में आंसू भरकर मछंदर नाथ को देखने लगा। उसे देखकर योगी ने कहा कि तुम सूर्य पुत्र हो इसीलिये तुम्हारा यश भी सूर्य के समान फैलेगा।
उस बालक को देखकर सरस्वती की आंखों से पानी की अश्रुधारा बहने लगी। योगी ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में संतान सुख लिखा ही नहीं है। आपको अपने कर्मों का फल तो भोगना ही पड़़ेगा।
इसीलिये अब तुम अपने मन को समझाओ कि हमारे भाग्य में संतान सुख लिखा ही नहीं है।
इस प्रकार योगी ने उस पतिव्रता को अहसास करा गोरखनाथ (Gorakhnath) को अपने साथ ले लिया। उन्होंने उसे नाथ सम्प्रदाय में शामिल कर लिया। जगन्नाथ की यात्रा कर योगी रामेश्वर पहुँचे। हनुमान जी वहां स्नान कर बैठने ही वाले थे कि वहां पर वर्षा होने लगी।
वर्षा होने के कारण वे पहाड़ पर अपने लिये जगह बनाने लगे। यह कार्य देख महेन्द्रनाथ को बड़ा आश्चर्य हुआ। योगी ने हनुमान जी से कहा कि जो तू इतनी वर्षा में पहाड़ खोद कर जगह बनाने की कोशिश कर रहा है यह तेरा घर कब तक तैयार होगा?
योगी के ऐसे वचन सुनकर हनुमान जी बोले-
तू है कौन? वह बोला मैं यति हूँ और मेरा नाम मछंदर नाथ ( Machander Nath) है। हनुमान जी बोले कि यति के मायने क्या हैं यह तू जानता भी है कि नहीं?
हनुमान जी बोले कि आज तक केवल एक ही यति है और वह है हनुमान। तू दूसरा यति कहां से पैदा हो गया? हनुमान जी के ऐसे वचन सुनकर मछेन्द्रनाथ बोले कि आप मुझे कौनसी कला दिखाओगे?
मछंदर नाथ ( Machander Nath) के वचन सुनकर हनुमान जी को बड़ा गुस्सा आया और वे ऊँची उड़ान भर एक तरफ गये और विकट रूप धारण कर लिया जिससे मछंदर नाथ को कोई भेद ही मालूम न हो।
उन्होंने मछंदर नाथ के ऊपर सात पर्वत फेंके। लेकिन योगीराज ने अपनी मंत्र सिद्धि के द्वारा वह अधर में ही रोक दिये। तब हनुमान जी को और भी क्रोध आया और उन्होंने एक बड़ा पर्वत उखाड़ कर योगी के सर पर फेंक दिया।
Baba Machander Nath Ki Katha || Baba Machindra Nath || Machander Nath Ki Kahani || Machindranath Story In Hindi

अब मछंदर नाथ ने सागर का जल लेकर वायु आकर्षण मंत्र पढ़ हनुमान जी के ऊपर छिड़का जिससे हनुमान जी वहीं के वहीं रुक गये। फिर हनुमान जी के पिता वायुदेव ने योगी से प्रार्थना की तब प्रार्थना स्वीकार कर हाथ में जल ले मंत्र पढ़कर हनुमान जी के ऊपर छिड़का।
अब पर्वत अपने स्थान पर आ जमे और हनुमान जी भी पहले जैसे हो गए। फिर योगी के पास आकर धन्य धन्य कहकर वे बोले कि मछंदर नाथ तुम्हारी विद्या शक्ति अपार है।
हनुमान के पिता वायुदेव ने कहा कि तुम्हारी मेरी शक्ति इनके समक्ष न चलेगी। योगी की मंत्र शक्ति महान है। तुम्हारी शक्ति तो भगवान राम हैं पर योगी के बस में तो सभी देवी देवता हैं।
बाद में योगी ने हनुमान और वायु के चरणों में नतमस्तक हो अपने ऊपर कृपा का हाथ रखने की विनती की। पुत्र हम दोनों सदा तुम्हारी सहायता के लिये तैयार रहेंगे। मैं तुम्हें यति होने का वरदान देता हूँ। योगी ने कहा कि मैं तो यति नाम से प्रसिद्ध हो जाऊँगा पर एक शंका है।
हनुमान जी मुस्कुराकर बोले कि क्या? तब योगीराज ने कहा कि आपने त्रिकालदर्शी होने के बाद भी मेरे से विवाद क्यों किया? आपसे मेरी पहली भेंट नागाश्वल्य वृक्ष के नीचे हुई थी।
उस समय सावर विद्या की कविता लिखवाकर आपने ही मुझे वरदान दिया था। हनुमान जी ने कहा कि आप कवि नारायण के अवतार हो और मछली के गर्भ से जन्म धारण किया है।
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