Machander Nath Ki Kahani Bhag 8 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 8 || Machander Nath Ki Katha Bhag 8 || मछेन्द्रनाथ की कथा भाग 8
Machander Nath Ki Kahani Bhag 8 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 8 || Machander Nath Ki Katha Bhag 8 || मछंदर नाथ की कथा भाग 8
Machander Nath Ki Kahani Bhag 8 || मछंदर नाथ की कहानी भाग 8 || Machander Nath Ki Katha Bhag 8 || मछंदर नाथ की कथा भाग 8
गुरु गोरखनाथ और वीरभद्र की लड़ाई
योगी हरेश्वर, तीर्थ यात्रा को चल दिये। उन्होंने गदासी तीर्थ में स्नान किया तो वहां वीरभद्र आये और योगी से भेंट हुई। दोनों ने हाथ जोड़कर एक दूसरे को नमस्कार किया। फिर वीरभद्र ने योगी से कहा कि आप कौन हैं? आप किस पंथ के अनुयायी हैं?
उस पर योगी ने कहा कि मुझे मछंदर नाथ कहते हैं। फिर वीरभद्र ने कहा कि एक झूठ बोलकर और मुंह काला कर संसार में घूमते हैं इसलिये आप यह कार्य छोड़ दीजिये। ऐसा न करने पर आपको संसार में जगह जगह दुख भोगना पड़ेगा। वेद विरूद्ध एक अलग पंथ चलाने वाला कौन गुरू है?
इस पर योगी को गुस्सा आ गया और गुस्से में वे बोले कि रे मूर्ख, तेरे दर्शन कर अब मुझे स्नान करना पड़ेगा। अब तू चुपचाप यहां से चला जा अन्यथा तेरी मौत तेरे बहुत करीब है।
यह सब सुन वीरभद्र को भी क्रोध आ गया और वह बोला अरे पाखण्डी, अभी मैं तेरे प्राण लेता हूँ। इतना कह वीरभद्र ने अपने धनुष पर अपना बाण चढ़ाया और बोला रे मूर्ख, तू अपनी धमकी से अपनी इज्जत गवां चुका है। सो तू ही मारा जाएगा।
तेरे जैसे बहुत दिलावर मेरे पास आये हैं। लगता है कि तेरे सिर पर मौत सवार हो गई है। अरे मूर्ख, राम का नाम तुम्हें इतना अपवित्र लग रहा है जो तू मुझे जपने को कह रहा है। इसी राम के मंत्र द्वारा शिवजी और वाल्मीकि जी प्रसन्न हुए हैं।
यही मंत्र मुझे मुक्ति भी देगा। यह कह योगी ने भस्मी हाथ में लेकर वजगास्त्र को शुद्ध कर फेंका। अब वह चारो दिशाओं में घूमने लगा। अब वीरभद्र को अपना प्राण तिनके के समान दिखाई देने लगा।
जो बाण योगी के प्राण के लिये था वही भस्मी के जरिये आकाश में घूमता हुआ दिखाई देने लगा। तभी मछंदर नाथ की शक्ति से वह बाण टुकड़े-टुकड़े हो गया।
फिर वीरभद्र ने नागास्त्र छोड़ा तब मछंदर नाथ ने अपनी रक्षा के लिये रुद्रक्ष और खगेद्वास्त्र छोड़ा जिसने वीरभद्र को कमजोर बना डाला। अब वीरभद्र ने वातास्त्र छोड़ा और मछंदर नाथ ने पर्वतास्त्र छोड़ा।
Baba Machander Nath Ki Katha || Baba Machindra Nath || Machander Nath Ki Kahani || Machindranath Story In Hindi || Machander Nath Ki Kahani Bhag 8


अंत में ब्रह्मा, विष्णु और महेश युद्ध स्थल पर आ गये और मछंदर नाथ से उनकी मित्रता करवाई। उन्होंने कहा कि ये कवि नारायण के अवतार हैं। तब वीरभद्र भी उनको वरदान देने के लिये तैयार हो गये और कहा- बड़े-बड़े वीर देखे पर मछंदर नाथ जैसा नहीं देखा।
फिर वीरभद्र ने पूछा कि आपकी क्या इच्छा है?
इस पर योगी जी ने कहा कि जो सावरी मंत्र मैंने सिद्ध किये हैं उनको आपकी सहायता जरूरी है। तब वीरभद्र ने योगी को वरदान दिया और योगी ने देवों को प्रणाम किया। फिर विष्णु भगवान ने योगी को पास बुला कर कहा कि जब भी तुम मेरे को याद करोगे मैं तुम्हारे संकट अवश्य दूर करुँगा।
ऐसा कहते कहते भगवान विष्णु ने अपना चक्रास्त्र उन्हें दे दिया। शिवजी ने प्रसन्न हो अपना त्रिशूलास्त्र उन्हें दिया और ब्रह्मा जी ने शापादयास्त्र दिया।
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देवराज इंद्र ने वज्रास्त्र प्रदान किया और अन्य देवों ने भी अपनी इच्छानुसार प्रदान किया। इस प्रकार सभी देवों ने अपने अपने ग्रहों की ओर प्रस्थान किया।
तभी देवों के सामने योगी ने इच्छा प्रकट की मैं मणिकर्णिका पर स्नान करना चाहता हूँ। देवों ने प्रसन्न होकर उन्हें आज्ञा दे दी। विष्णु जी अपने विमान में बैठाकर बैकुण्ठ धाम को ले जाते हैं। अपने साथ आसन देते हैं।
वह नित्यप्रति मणिकर्णिका पर स्नान करते हैं। फिर योगी महाराज ने अपने पहले जन्म की समाधि देखने की इच्छा प्रकट की।
अब भगवान विष्णु उन्हें साथ ले जाकर वासदेव और कविनारायण की समाधि दिखाते हैं जिसे देख मछंदर नाथ अति प्रसन्न हो जाते हैं।


उस सब के बाद वे इन्द्र के साथ अमरावती जाते हैं और वहां से ब्रह्माणी के कहने से नारद मुनि के साथ सत्यलोक को गये। इसी प्रकार योगी महाराज सात वर्षों तक मेहमानदारियों में रहते हैं।
सभी देवताओं ने उन्हें एक एक दिन अपने पास रखा। अन्त में सभी देवी देवताओं से आज्ञा लेने के बाद विमान में बैठकर आते हैं और मृत्युलोक में वापस आ जाते हैं।
वापस आने के कुछ दिन के बाद बाबा मछंदर नाथ तीर्थ यात्रा के लिये रवाना होते हैं प्रथम केकड़ा देश के वज्रमन में गये जहां देवी भगवती का स्थान है। वहां उन्होंने 360 गर्म जल से भरे कुण्ड देखे।
योगी को ये देखकर बडा आश्चर्य होता है। वे सभी कुण्डों में स्नान करके देवी को दर्शन को जाते हैं। वहां के पुजारी ने उन्हें बताया कि सर्वप्रथम यहां वशिष्ठ मुनि ने यज्ञ किया था।
सभी देवताओं ने स्नान करने के लिये इन गर्म कुण्डों का निर्माण किया। वशिष्ठ मुनि यहां पर बारह वर्ष बारह दिनो तक रहे थे तथा यज्ञ समाप्त होने के बाद वे स्वर्गलोक को चले गये।
Guru Machander Nath Ki Katha || गुरू मछंदर नाथ की कथा || Baba Machander Nath Ki Kahani || Machander Nath Ki Kahani Bhag 8


यह सब सुन योगी मछंदर नाथ जी की भी इच्छा हुई कि वे भी एक कुण्ड का निर्माण करें। तब उन्होंने अपने त्रिशूल से कुण्ड का निर्माण किया और वरुण मंत्र का जाप कर उन्हें अग्नि का प्रवेश कर जल को गर्म किया।
फिर अपने भोगावती कुंज में स्नान किया और फिर देवी दर्शन को गये। इसके बाद देवी जी को अपने तैयार किये गर्म जल में स्नान करवाया। देवी ने प्रसन्न हो योगी को एक महीने अपने पास रखा।
एक दिन योगी ने पूछा कि हे माता, आपका नाम वज्रबाई क्यों पड़ा? यह सुनकर देवी माता ने कहा कि यहां वशिष्ठ मुनि यज्ञ के समय देवराज इंद्र भी आये थे। यहां के मुनियों ने इन्द्र की इज्जत नहीं की तब इंद्र ने अपना वज्रास्त्र छोड़ा।
ऐसा होने पर भगवान राम ने शक्ति मंत्र का कुश फेंका जिसमें मैं प्रकट हुई और इन्द्र का वज्रास्त्र निगल गई। मैने यज्ञ में विघ्न नहीं पड़ने दिया।
इसके घटना के बाद इन्द्रदेव ने भगवान श्रीराम से अपना वज्रास्त्र पाने के लिये प्रार्थना की और तब भगवान राम के कहने पर मैंने इंद्र का अस्त्र वापिस किया। इसी घटना के बाद से ऋषि मुनियों ने मेरा नाम वज्राबाई रख दिया।
सभी के जाने के पश्चात राम जी ने मेरी यहां स्थापना की और प्राण प्रतिष्ठा कर भोगवती के ठण्डे जल में स्नान कराया और सदा के लिये इस कुण्ड का नाम भोगवती कुण्ड रख दिया।


अब बाबा मछंदर नाथ यात्रा करते हुए द्वारिका जा पहुँचे। फिर गोमती में स्नान कर राम दर्शन करने अयोध्या पहुँचे। वहां सरयू नदी मे स्नान कर राम दर्शन को मन्दिर जाते हैं।
उस समय वहां पशुपति राजा वहां शासन करते थे। यह राजा भगवान के दर्शन करने अपनी सेना सहित आता था। चारों तरफ भीड़ भाड़ हो जाया करती थी।
उस भारी भीड़ को धकेलते हुये मछंदर नाथ भी दर्शनों को आगे बढ़े। तब राजा के सैनिकों ने उनका अपमान किया और भला बुरा कहा।
अपना अपमान होता देख योगी को गुस्सा आया परंतु योगी शांत ही रहे। फिर योगी ने यह सोचा कि इनके मुंह लगने से क्या मिलेगा? मुझे सीधा राजा से ही मिलना चाहिये।
यह सोच योगी ने स्पर्शास्त्र मंत्र जपकर श्री राम का नाम लेकर भस्म को मंत्रित कर रख लिया। उधर राजा ने पूजा कर अपना मस्तक टेका। अब योगी ने अपनी भस्मी को उस राजा पर फेंका।
जिस कारण राजा का मस्तक नहीं उठ सका लकिन राजा ने माथा उठाने की पूरी कोशिश की लेकिन सभी प्रयत्न बेकार सिद्ध हुए।
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अब राजा ने हार कर सारी घटना अपने प्रधान को बतायी। फिर प्रधान ने आकर सभी सैनिकों से पूछा कि किसी से लड़ाई झगड़ा तो नहीं हुआ क्या? किसी ने कोई संत का अपमान तो नहीं किया?
तभी योगी दरवाजे से बाहर आया और प्रधान ने उस यागी को पहचान लिया और उसके चरणों में शीश नवाकर बोला कि स्वामी हमसे कोई भूल हुई हो तो क्षमा करना।
उसकी बातें सुनकर योगी का मन शान्त हो गया और हाथ मे विभूति लेकर विभक्त मंत्र छोड़ दिया जिससे राजा का मस्तक जमीन से ऊपर उठ गया। राजा का शीश उठते ही प्रधान, योगी को मस्तक झुकाकर राजा के पास लेकर जाता है।

राजा ने योगी को अपना मस्तक चरणों में नवाकर परिचय पूछा। उस पर योगी ने कहा कि मुझे मछंदर नाथ कहते हैं। मछंदर नाथ नाम सुनकर राजा फूला नहीं समाया। तब राजा ने योगी को अपनी बग्गी में बैठाकर अपने महल ले गया।
राजा ने योगी की भली-भांति सेवा सत्कार किया। राजा हर समय हाथ जोडे और सेवा में तत्पर रहा। इस प्रकार राजा का प्रेम देख योगी बोले कि आपकी जो चाहत हो वह मुझसे कहो।
यह सुन राजा बोला कि मैं भगवान श्रीराम का वंशज हूँ। यह वचन सुन योगी ने कहा कि मैं तेरी भेंट भगवान श्रीराम से अवश्य करवा दूँगा। फिर योगी ने धूमारू मंत्र जाप कर भस्मी मंत्र सूर्य पर फेंका जिससे सारे वायुमण्डल में धुंआ धुंआ फैल गया और सूर्य छिप गया।
सूर्य ने वायु अस्त्र की योजना बनाकर वायु बाण छोड़ा जिसके कारण तेज हवा चली और चारों तरफ अंधेरा फैल गया। अब योगी ने पर्वतास्त्र छोड़ा जिससे सूर्य का रथ रूक गया और सूर्यदेव ने वज्रास्त्र छोड़ा जिससे पर्वतास्त्र से निर्माण पर्वत हट गए।
तब मछंदर नाथ ने भ्रमास्त्र की योजना बनाकर उसे छोड़ा जिससे सूर्य भगवान कि सभी घोड़े भ्रम में पड़ गये। वे सही मार्ग छोड़कर दूसरी तरफ जाने लगे।


अब सूर्य देवता ने ज्ञानास्त्र छोड़ा तो भ्रम दूर हुआ। तभी मछंदर नाथ ने वाताकर्षण यंत्र छोड़ा और सूर्य देव के सभी घोड़ों का श्वास ही बंद हो गया। सूर्य देव का रथ अब जमीन पर आ गिरा।
सूर्य की गरमी के कारण अब सारी पृथ्वी जलने लगी। अब योगी ने उढकास्त्र की स्थापना की जिससे मूसलाधार वर्षा होने लगी जिससे धरती की अग्नि शांत हुई।
परंतु सूर्य देव अभी भी बेहोश ही पड़े थे। सारी सृष्टि में चिन्ता हो गई और सभी देवता चिंतित होकर मछंदर नाथ के पास आये और बोले कि सूर्य देव का क्या कसूर है?
इस पर योगी जी बोले-
यह पशुपति राजा सूर्यवंशी होकर भी अपने वंश की सुध क्यों नहीं लेते? दूसरा कारण यह है कि सावरी मंत्र विद्या के लिये मुझे सूर्यदेव की आवश्यकता है।
जिन्होंने सूर्य वंश में जन्म लिया और अपनी विजय पताका सारे संसार में फहराई उन प्रभु राम जी और पशुपति राजा की भेंट मुझे करानी है।
यह मेरा भक्त है अत: आप मेरी मनोकामना पूर्ण करने का कष्ट करें। तब भगवान विष्णु ने कहा कि पहले तुम सूर्य देव को होश में लाओ तभी तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।
और सूर्य का पाठ करने से ओम योनी मिलती है। हम सभी आपके हितार्थ में ही कहने आये हैं। क्या वीरभद्र के कहने पर हम सभी देवताओं ने तुम्हारे वंश में रहने का तुम्हें वरदान दिया था कि नहीं?
इस पर योगी ने कहा कि प्रभु आप मेरे वचनों की लाज रखें और राजा की राम से भेंट करवा दें। तब मेरे मन को शांति मिलेगी। इतना सुनते ही वहां भगवान श्रीराम प्रकट हो गए।
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अब राजा व योगी को बड़ा आनन्द आया और दोनो प्रसन्न होकर रामजी के चरणों में जा गिरे।
तब राम ने दोनों को उठाकर अपने हृदय से लगाया। यागी ने श्रीराम से प्रार्थना की तब राम ने आशीर्वाद दिया कि सावरी विद्या के मंत्रों में तुम्हारा नाम अमर हो।
इसीलिये तुम अब यहां रहकर अपने कार्य की सिद्धि करो। सभी देवताओं का अवतार दतात्रेय है और उनका हाथ तुम्हारे माथे पर है। मंत्रोच्चारण में जब भी मेरा नाम आयेगा तभी मैं तुम्हारा कार्य सिद्ध कर दूंगा।
इसी प्रकार भगवान श्रीराम ने वचन दिया और कहा कि तुम भी तो कवि नारायण के अवतार हो इसीलिये तुरंत भास्कर को होश में ला दो जिससे सारे संसार का कार्य सुचारू रुप से चल सके।
यह सुनकर योगी ने वायुक्त अस्त्र मंत्र जपकर भस्मी को सूर्य पर फेंका तो सूर्यदेव तुरंत खड़े हो गये और सभी देवताओं को अपने निकट खड़ा देख हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
तब सूर्य देव ने भगवान विष्णु से पूछा कि मुझे हराने वाले कौन से प्रतापी वीर हैं। मैं उसे देखना चाहता हूँ। तब देवों ने मछंदर नाथ को सूर्य से भेंट करने को कहा तब योगी ने सोचा कि कहीं सूर्य देव मुझ पर गुस्सा तो नहीं करेंगे।
ऐसा सोच कर उन्होंने चण्डास्त्र मंत्र जपकर सूर्य के सामने गये और नमस्कार किया। तब योगी को अपना नाम बताने को कहा।



तो शंकर भगवान ने शुरू से उनकी कथा सुनाई। अब सब सच जानकर सूर्य देव ने सावरी मंत्र विद्या में अपनी सहायता देने का वचन दिया।
तब योगी ने सूर्यदेव के चरणों मे राजा पशुपति को डाला। अपने वंशज को अपने कदमों में देख सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए। राम दर्शन करने के पश्चात योगी महाराज भी तीर्थ यात्रा करने चल पड़े। ये दिन मे तो सफर करते परंतु रात मे किसी मंदिर या मठ में रूक जाते।
इस प्रकार यात्रा करते हुए दोनों गुरू चेले उत्कल राज्य में जा पहुँचे। उनकी अभिलाषा जगन्नाथ जी के दर्शनों की थी। इस राज्य के बाहर ही एक जीर्ण शीर्ण मंदिर में दोनों रुक गये।
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वह स्थान कनकगिरी कहलाता था। योगी मछेन्द्र, गुरू गोरखनाथ जी की परीक्षा लेना चाहते थे। बड़ा उचित अवसर देखकर वे बोले कि बेटा बहुत भूख लगी है। तो गोरखनाथ जी बोले कि गुरू जी आपकी जो आज्ञा हो।
तो गुरू ने कहा कि बेटा भिक्षा मांगना ही सबसे सरल उपाय है। गोरखनाथ गुरू की आज्ञा ले भिक्षा मांगने चल पड़े । कुछ घरो मे अलख जलाने पर कुछ नहीं मिला तो थोड़ा आगे चलकर देखा तो एक ब्राह्मण के घर के पर धूम-धाम से श्राद्ध हो रहा था जिसे देख गुरू गोरखनाथ खुश होकर अलख का नाम लेना शुरू कर देते हैं।
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